- by Dr. Pankaj Kumar Agarwal
- in Glaucoma क्या है?
- at 26 Dec, 2018
Glaucoma क्या है?

Glaucoma एक आँख की बीमारी है जिसे हम आम भाषा में काला मोतिया या काला पानी के नाम से भी जानते हैं। आँख के अंदर एक तरल द्रव्य होता है जिसे aquous humour कहते हैं। इसी के कारण आखों में एक दबाव (intraoccular pressure-IOP) बना रहता है जो लगभग 15 से 20 mm of Hg होता है। इस IOP के 20 mm of Hg से अधिक बढ़ जाने को ही glaucoma कहते हैं। सामान्यतः यह glaucoma स्त्री एवं पुरुष दोनों में लगभग 40 वर्ष की उम्र के बाद ही होता है परन्तु कभी-कभी यह बच्चों में भी मिल सकता है (infantile glaucoma)। लम्बे समय तक बढ़ा रहा यह IOP, आँखों की नस, optic nerve, पर pressure डालता है जिससे आँखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जाती है। यही glaucoma को भली-भांति नियंत्रित न करने का सबसे खतनाक पहलू है।
यह कैसे होता है?
आँखों का यह द्रव्य ciliary body नामक संरचना से बनता है जो इसे posterior chamber में secrete करती है। Posterior chamber से यह anterior chamber में पहुँचता है। Anterior chamber के बिलकुल किनारे (angle) में स्थित छन्नीनुमा trabecular meshwork से छनता हुआ यह canal of Schlemm के द्वारा आँखों की episcleral veins में drain हो जाता है। अब यदि यह aquous humour अपनी सामान्य मात्रा से अधिक बनने लगे या फिर बनने के बार यह आंखों से बाहर न निकल पाए, इन दोनों स्थितियों में यह IOP को बढ़ा सकता है। जब anterior chamber के angle में स्थित trabecular meshwork के block हो जाने से aquous humour आँखों से बाहर नहीं निकल पाता है तब उसे angle closure glaucoma कहते हैं जबकि angle के खुले रहने एवं ciliary body से aquous humour के ही अधिक बनने से होने वाले glaucma को open angle glaucoma कहते हैं। इनके अतिरिक्त, लम्बे समय तक cream, inhaler अथवा tablets, किसी भी रूप में steroids का सेवन करने से भी IOP बढ़ सकता है।
इसके क्या–क्या लक्षण होते हैं?
Glaucoma के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इसमें लम्बी अवधि तक रोगी को कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि रोग की प्रारंभिक अवस्था में न तो उसकी दृष्टि में कोई कमी नहीं आती और न ही उसे कोई और कठिनाई महसूस होती है। IOP के एकाएक तेजी से बढ़ जाने या लम्बे समय तक बढ़े रहने के बाद ही रोगी को कुछ लक्षण उत्पन्न होते हैं। ये निम्नांकित हो सकते हैं –
1. इंद्रधनुष की तरह रंग-बिरंगी रौशनी दिखलायी देना,
2. Side या peripheral vision में कमी आते जाना, जिससे दोनों आँखों से दिखलाई देने वाला क्षेत्र किनारों (periphery) से धीरे-धीरे सिकुड़ता जाता है एवं अंत में रोगी की दृष्टि इतनी संकरी हो जाती है जैसे वह किसी लम्बी नली से देख पा रहा हो (tubular vision), एवं
3. IOP के तेजी से बढ़ने की स्थिति (acute glaucoma) में आँखों का लाल हो जाना, उसमें खिंचाव अथवा दर्द होना, सिर में भी दर्द होना तथा अस्पष्ट या धुंधला दिखलाई देना
इसमें किन-किन जांचों की आवश्यकता पड़ती है?
उपरोक्त लक्षणों में से एक के भी उत्पन्न होते ही रोगी को गंभीरता पूर्वक आँखों की विस्तृत जांच करानी चाहिए। ध्यान रहे, रोग की पूर्व अवस्था में ही इसके उपचार से लाभ प्राप्त किया जा सकता है, लम्बे समय तक इसके अनियंत्रित रहने से आँखों में irreversible damage हो जाने के बाद नहीं।
1. IOP measurement – एक विशेष यंत्र, Applanation tonometer, द्वारा की जा सकने वाली यह जांच किसी नेत्र विशेषज्ञ से ही करानी चाहिए। सामान्य IOP, 15 से 20 mm of Hg होता है जो 20 mm of Hg से अधिक होने पर glaucoma की सम्भावना की ओर इंगित करता है। Treatment के दौरान भी यह जांच समय-समय पर करानी होती है जिससे दवाओं की मात्रा को निर्धारित किया जा सके।
2. Gonioscopy – Glaucoma की पुष्टि करने के लिए, एवं यह किस प्रकार का है यह जानने के लिए, एक विशेष प्रकार के लेंस, 3 mirror Gonioscope, को आँखों की cornea के ऊपर रखकर slit lamp के द्वारा anterior chamber के angle को नापा जाता है।
3. Field of vision test – यह जांच एक आधुनिक मशीन, automated perimeter, के द्वारा की जाती है जिससे आँखों की peripheral field मापी जाती है। Peripheral field का सिकुड़ना लम्बे समय तक अनियंत्रित रहे glaucoma का दुष्प्रभाव है जो पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता।
4. OCT – इससे optic nerve की जांच की जाती है जो लम्बे समय तक अनियंत्रित रहे glaucoma के प्रभाव से सूखती जाती है। इस दुष्प्रभाव को भी पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। इस जांच को भी उपचार की कुछ अवधि के बाद दोबारा करा कर यह देखा जाता है कि क्या उपचार से इसके बढ़ने में किसी प्रकार की रोक लगाना संभव हो पाया या नहीं।
5. Water drinking test
6. Corneal thickness measurement
उपचार
Glaucoma का उपचार मुख्य रूप से दवाओं के द्वारा ही किया जा सकता है परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में इसमें surgery की आवश्यकता भी पड़ सकती है। ध्यान रहे, glaucoma एक आजीवन रहने वाला रोग है जिसका उपचार भी आजीवन करना पड़ता है। इसकी अधिकाँश दवाएं आँखों में डालने की ही होती हैं जिनका प्रभाव aquous humour के बनने की गति को कम कर के अथवा इसके drainage की गति को बढ़ा कर IOP को घटाना होता है। इस प्रकार आँखों को बढ़े हुए IOP के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है। पुनः ध्यान रहे, लम्बे समय तक अनियंत्रित रहे IOP से optic nerve पर हुए दुष्प्रभाव को वापस सामान्य स्थिति में ला पाना संभव नहीं होता परन्तु इसे बढ़ने से रोका अवश्य जा सकता है।
Angle closure glaucoma के रोगी अधिकांशतयः acute stage में आते हैं जो आँखों एवं सिर में तीव्र पीड़ा का अनुभव करते हैं। इस स्थिति में IOP 40 mm of Hg से भी अधिक बढ़ा हुआ हो सकता है। ऐसे रोगियों को अक्सर अस्पताल में भर्ती कर intravenous mannitol drip तक देने की आवश्यकता पड़ सकती है। उपचार से अपेक्षित लाभ न मिल पाने की स्थिति में कुछ लोगों को laser द्वारा anterior chamber के angle को खोलने (laser irodotomy) की भी आवश्यकता पड़ सकती है।
Glaucoma के उपचार में आने वाली दवाएं एवं उनके प्रयोग के दौरान ध्यान में रखी जाने वालीसावधानियां
Dorzolamide एवं brinzolamide – आँखों के आंसू एवं उसमें डाली जाने वाली सभी दवाएं आँखों में नाक के पास मिलने वाली एक नली द्वारा नाक से होते हुए गले में drain होती रहती हैं। यह दोनों दवाएं, गले में पहुँच कर गला खराब कर सकती हैं। इसीलिए, इनकी केवल एक ही बूँद आँखों में डालें और दवा डालते समय आँखों के नाक की तरफ के कोने को उँगली से 1-2 मिनट तक दबा कर रखें जिससे वह गले में न जा सके।
Timolol (Glaucomol) – Beta blocker group की यह दवा heart एवं lungs पर भी कार्य करती है इसलिए high blood pressure, high blood cholesterol, angina, heart attack, heart block एवं दमा (asthma) के रोगियों को अपने रोगों की जानकारी अपने नेत्र विशेषज्ञ को जरूर दे देनी चाहिए। Depression के रोगियों में भी यह दवा उनके depression को बढ़ा सकती है।
Brimodine (Alphagan) – यह एक बहुत प्रचलित एवं लाभकारी दवा है। इससे नींद बहुत आना, होंठों का सूखना, पलकों में सूजन एवं एलर्जी उत्पन्न हो सकती हैं। इनमें किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर तुरंत अपने नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
Prostaglandin analogues (Zalatan, Travatan, Travopost) – यह दवाएं रात्रि में ही प्रयोग में लायी जाती हैं। लम्बे समय तक इनके प्रयोग से पलकों के बाल लम्बे हो सकते हैं। इनसे पलकों की त्वचा का रंग भी काला हो सकता है। इसीलिए इनकी भी केवल एक ही बूँद आँखों में डालनी चाहिए एवं डालने के कुछ देर बाद पलकों को tissue paper से पोंछ लेना चाहिए जिससे दवा अधिक समय तक पलकों की त्वचा पर न लगी रहे।
ध्यान रहे, glaucoma के अलग-अलग कारणों एवं अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग दवाएं, अलग-अलग मात्रा में प्रयोग में लायी जाती हैं। इन्हें नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श के बाद ही प्रयोग में लाएं। उपचार के दौरान भी 3 से 6 माह के अंतरालों पर, नियमित रूप से IOP की जांच अवश्य कराएं जिससे दवाओं को प्रभावी रूप से प्रयोग में लाया जा सके।
Cancel reply
About Me
विनम्र निवेदन
MCH PRAKASHAN का उद्दश्य पाठकों को स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संबंधी जानकारियों को हिंदी में अवगत कराना है।..
Read MoreVision & Mission
Vision
Realizing the Full Potential of the Digital Space, Universal Access to Research and Education related to Medical Concepts, Full Participation in spreading Awareness in our Mother language. To Drive a New Era of Knowledge, Self-Awareness, and Good Health !
Mission
Endorsement of the Most Complex Medical Concepts in the Easiest Way.
Recent Posts

- Video
- at 12 August, 2018
Antiplatelet Therapy

- Video
- at 18 Oct, 2021
Antiplatelet Therapy 4

- Text
- at 13 May, 2022