- by Dr Keshav Das Sadhwani
- in Nephrotic Syndrome
- at 21st April, 2019
Nephrotic Syndrome

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम (Nephrotic syndrome) बच्चों में बार-बार सूजन आने का महत्वपूर्ण कारण है।
शरीर में सूजन, पेशाब की जांच नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के निदान औप उपचार के नियमन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इन्फेक्शन की वजह से नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में सूजन बार-बार हो सकती है। इसलिए संक्रमण न होने देने की सावधानी महत्वपूर्ण है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के उपचार में प्रेडनीसोलोन सबसे अधिक उपयोगी और असरकारक दवा है।
डॉक्टरों की देखरेख में उचित उपचार लेने से प्रेडनीसोलोन के दुष्परिणामों (विपरीत असर) को कम किया जा सकता है
बच्चों में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की बीमारी
आपका बच्चा अभी तक बिल्कुल स्वस्थ था। उसके चेहरे पर और आँखो पर हल्की सी सूजन हो जाती है। यह भ्रम होता है, कि यह सूजन एलर्जी के कारण है, या बच्चें की आँख में इन्फेक्शन है। किन्तु यह सूजन धीरे-धीरे बढ़ती गई? डॉक्टर ने उसके पेशाब और खून की जॉच के लिए कहा । जाँच से डॉक्टर ने बताया कि बच्चे को नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम है। यह गुर्दे बीमारी है। यह सुन कर आप बहुत परेशान हो जाते है। आपके मन में अनेक प्रश्न आते हैं।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम क्या है?
यह किस कारण से होता है?
इसकी इलाज क्या है?
क्या यह पूरी तरह ठीक हो जाता है?
इसे ठीक होने में कितना समय लगेगा?
क्या इससे गुर्दे खराब हो जाएंगे?
क्या इसकी इलाज किसी अन्य तरीके से भी किया जा सकता है, जैसे-होम्योपैथी?
इसे ठीक करने के लिए किस तरह की भोजन संबंधित या अन्य सावधानियों की जरुरत होगी?
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के विषय में इस विवरण को पढ़कर आपको उचित जानकारी मिलेगी और आपकी शंका दूर होगी। आपके पूरे सहयोग से बच्चे के उचित इलाज में सहायता मिलेगी।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम गुर्दे की बीमारी है। इस बीमारी की जानकारी के लिए गुर्दे किस तरह से काम करते हैं, यह समझना जरुरी है।
गुर्दे (kidneys)
हर व्यक्ति में दो गुर्दे होते है। इसमें पतली-पतली लाखों रक्त की नलियाँ होती हैं। इन नलियों में खून बराबर बहता रहता है और उनका काम खून को छानना और सा़फ करना है। शरीर के लिए हानिकारक पदार्थ खून से छनकर पेशाब के रुप में शरीर से बाहर निकल जाते हैं और साफ खून शरीर में वापस चला जाता है। बल्ड प्रेशर को ठीक रखने, हड़िडयों को मजबूत बनाने और खून बनानें में भी गुर्दो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
नेफ्रोन (nephron)
प्रत्येक गुर्दे में काम करने वाले लगभग दस लाख यूनिट होते है, जिन्हे नेफ्रोन कहते है। नेफ्रोन के दो हिस्से होते है, ग्लोमेरुलस जो कि रक्त नलियों का बना है, और घुमावदार लम्बी ट्युब्यूल। ग्लोमैरुलस से छने खून से ट्युब्यूल उपयोगी पदार्थो को खून में वापस भेज देता है और हानिकारक पदार्थों को पेशाब के द्वारा बाहर निकाल देता है।
ग्लोमेरुलस की बनावट ऐसी होती है कि प्रोटीन की कण नही के बराबर छनकर ट्युब्यूल में जाते है। इसलिए आमलौर पर पेशाब में बहुत ही कम मात्रा में प्रोटीन होता है। red blood cell और white blood cell भी कभी-कभी माई क्रोस्कोप द्वारा जॉच करने से दिखाई देते है। परन्तु जब बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन छनकर पेशाब में आता है तो इसे प्रोटीन्यूरिया कहते है और यही नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का कारण है।
पेशाब में प्रोटीन के आने का कारण
सामान्यतः प्रोटीन के जितने कण ग्लोमेरुलस से छनकर आते हैं वह सभी ब्लड में वापस ले लिए जाते है। इस प्रकार, पेशाब में प्रोटीन की मात्रा शून्य रहती है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में प्रोटीन के जितने कण ग्लोमेरुलस से छनकर आते हैं, उनमें से अधिकतर लीक होकर पेशाब में चले जाते हैं। इसके कारण पेशाब में प्रोटीन की मात्रा +++ या ++++ तक हो सकती है।
ग्लोमेरुलस में खून की नलियों से अधिक मात्रा में प्रोटीन के छनने का कारण ठीक से पता नही चला है। बच्चों मे नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के करीब 25 प्रतिशत रोगियों में गुर्दे की रक्त की नलियों में स्थाई खराबी नही होती है। इलाज से प्रोटीन का छनना बन्द हो सकता है।
बहुत ही कम बच्चों में ग्लोमेरुलस की खून की नलियों में खराबी कुछ अन्य रोगों के कारण भी होती है जिस कारण प्रोटीन का छनना बढ़ जाता है। डॉक्टर उपयुक्त जाँच के द्वारा इन स्थितियों का पता लगा सकते है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम क्या है?
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का लक्षण चेहरे, पेरों और पेट पर सूजन होना है, जो कि पेशाब में प्रोटीन की अधिक मात्रा के कारण आती है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि सामान्य व्यक्ति के पेशाब में प्रोटीन की मात्रा केवल नाममात्र होती है, और जाँच करनें पर प्रोटीन ’’निल‘ आता है।
रक्त में मुख्य प्रोटीन ऐलब्युमिन है। जब पेशाब में प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में निकलने लगता है तो रक्त में इसकी मात्रा कम हो जाती है। प्रोटीन खून में पानी को स्पंज की तरह रोककर रखता है, लेकिन जब प्रोटीन की कमी होती है तो यह पानी खून की बारीक नलियों से बाहर आ कर शरीर में जमा होने लगता है । यह सूजन शुरु में आँखो के चारो तरफ दिखाई देती है और बाद में धीरे-धीरे बढ़ने लगती है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के क्या कारण है?
ज्यादातर रोगियों में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के होने का सही कारण ज्ञात नही है। सारे विश्व में यह रोग बच्चों में अधिक होता है। यह रोग वायरस या बैक्टोरिया से नही होता। इसका खाने-पीने की चीजे अथवा परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से कोई संबंध नही है, अमीर-गरीब सभी वर्गो में होता है। यह छूत की बीमारी नही है और न ही यह परिवार के अन्य सदस्यों को प्रभावित करती है (सिर्फ एक प्रतिशत मरी़जो से परिवार के एक से अधिक बच्चों को यह बीमारी हो सकती है)।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के लक्षण
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का प्रमुख लक्षण शरीर पर सूजन आना है । सबसे पहले यह सूजन सुबह उठने पर आँखो के चारों तरफ दिखाई देती है। दिन में बच्चा जब चलता फिरता है तो शाम होने तक यह सूजन गायब हो जाती है। असल में शरीर में एकत्रित पानी पेरों की तरफ जमा होने लगता है जहाँ शुरु से इसका पता नहीं चलता। आँखो की सूजन का कारण लोग नेत्र रोग या एलर्जी समझ लेते है। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम से किसी भी तरह की कोई खुजली या आँखों में लाली नहीं होती। बच्चा स्वस्थ एवं सक्रिय होता है और वह बीमार दिखाई नही देता। धीरे-धीरे यह सूजन उसके पैरों, हाथों एवं पेट पर दिखने लगती है। यदि इसका इलाज समय पर नही किया गया तो पेट में पानी भर जाता है और वह बहुत अधिक फूला हुआ दिखता है। इस अवस्था में पेशाब की मात्रा कम हो जाती है और सूजन को कम करने के लिए जल्दी से जल्दी उचित इलाज आवश्यक है।
इस रोग में बच्चे की कौन सी जाँच करायी जाएगी?
पेशाब की जाँच
पेशाब में प्रोटीन की जाँच करने से नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का पता लगता है। रिपोर्ट में 3+ या 4+ प्रोटीन आता है। आपको पेशाब में प्रोटीन की जाँच करना अवश्य सीखना चाहिए और प्रोटीन्यूरिया की मात्रा लिखकर रखें। पेशाब में लाल ब्लड सैल और सफेद ब्लड सैल माइक्रोस्कोप से देखे जाते है। यदि पेशाब में इन्फैक्शन है तो इसके लिए पेशाब का कल्चर किया जाता है। कभी-कभी यह आवश्यक हो जाता है कि 24 घंटो में प्रोटीन (एवं अन्य पदार्थो) की कितनी मात्रा पेशाब के माध्यम से बाहर निकलती है, इसकी जाँच की जाए।
खून की जाँच
हीमोग्लोबिन, व्हाइट सैल काउंट, प्रोटीन, ऐलब्युमिन, कोलेस्ट्रोल और इलेक्ट्रोलाइट्स की जाँच खून में की जाती है। पेशाब में अधिक प्रोटीन के आने से खून में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है और कोलेस्ट्रोल बढ़ जाता है । परन्तु जब इलाज करने पर प्रोटीनयूरिया खत्म हो जाता है तो खून में प्रोटीन और कोलेस्ट्रोल की मात्रा भी सामान्य हो जाती है। गुर्दे की कार्य विधि का पता करने के लिए रक्त में यूरिया और क्रिऐटिनीन की मात्रा की जाँच जरुरी होती है।
अन्य जाँच
इन्फैक्शन का पता लगाने के लिए शुरु में छाती का एक्स-रे और Montoux परीक्षण करना आवश्यक है। कभी-कभी विशेष रक्त जाँच जैसे कि complement level, antinuclear antibody (ANA), antistreptolysin O (ASO) titre एवं हेपेटाइटिस-बी एंटीजन की जाँच करानी होती है। इसके बारे में डॉक्टर आपको जानकारी देंगे।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के प्रकार
1. लगभग 60 प्रतिशत नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम से पीड़ित बच्चों में यह रोग 2 से 6 वर्ष की आयु में शुरु होता है। 90 प्रतिशत में इसे minimal change नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के रुप में देखा गया है। इसका तात्पर्य है कि इन रोगियों में माइक्रोस्कोप से परीक्षण करने पर, इनके गुर्दे में कोई दोष नहीं पाया जाता। डॉक्टर निम्नलिखित परीक्षणों के आधार पर इसकी पहचान कर सकते है।
1. बच्चे का blood presure
2. पेशाब मे लाल ब्लड सैल
3. रक्त में यूरिया और क्रिऐटिनीन का स्तर
ऐसे बच्चे प्रेडनीसोलोन नामक दवाई देने पर जल्दी ठीक हो जाते है और पेशाब में प्रोटीन का आना बन्द हो जाता है। यद्यपि ज्यादातर रोगियों में प्रोटीनयूरिया दुबारा से शुरु हो जाता है।
2. जब नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम दस वर्ष की आयु के बाद अथवा एक वर्ष की आयु से कम में शुरु होता है तब यह अक्सर ’मिनिमल चेज’ नहीं होता है। पूर्ण शारीरिक और प्रयोगशाला जाँच (खून और पेशाब की जाँच) के पश्चात यदि आपके डॉक्टर को लगता है कि बच्चे को मिनिमल चेज नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने की संभावना बहुत कम है तो वह गुर्दे की बायोप्सी करने की सलाह दे सकते है। यदि बायेप्सी मे काफी खराबी निकलती है, तो हो सकता है कि प्रेडनीसोलोन का असर न हो। इसके लिए अन्य दवाईयों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार के रोगियों के इलाज करने में कठिनाई आती है और हो सकता है कि यह समस्या काफी लम्बे समय तक रहे।
गुर्दे की बायोप्सी कब जरुरी है?
मिनिमल चेंज नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम अक्सर छोटे बच्चों में शुरु होता है। ऐसे बच्चों मे रक्तचाप ठीक रहता है। पेशाब में लाल ब्लड सैल नहीं आते और खून में यूरिया और क्रिएटिनीन का स्तर सामान्य रहता है। ऐसे बच्चों का प्रेडनीसोलोन से उपचार किया जाता है। यदि इस दवा को लेने के बाद एक निश्चित समय में बच्चे के पेशाब में प्रोटीन के आने में कमी नहीं आती तो इसके पश्चात गुर्दे की बायोप्सी की जा सकती है। यदि बच्चे के पेशाब में लाल ब्लड सैल है, अथवा रक्तचाप बढ़ा हुआ है तो इसके लिए बायोप्सी करना जरुरी होता है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का उपचार
खून और पेशाब की जाँच की रिपोर्ट को देखकर बच्चे में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के प्रकार के बारे में विचार करेगें। यदि ’मिनिमल चेंज नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम’ का अनुमान होता है तो वह प्रेड्नीसोलोन का उपयोग करेगें। इस दवा को शुरु करने से पूर्व यदि बच्चे को कोई इन्फैक्शन (गला खराब होना, फेफ़डो में इन्फैक्शन आदि) है, तो वह पहले उसका इलाज करेगें। यदि बच्चे के शरीर में बहुत सूजन है तो डॉक्टर इसे कम करने के लिए उचित दवा देगें। प्रेड्नीसोलोन उसके बाद ही शुरु करेंगे।
प्रेड्नीसोलोन एक स्टेरॉएड है। इसकी गोलियाँ कई नामों से (वाइसोलोन, डेल्टाकोरट्रिल) और कई मात्राओं (5, 10, 20, 30, 40 mg) में मिलती है। प्रेड्नीसोलोन की मात्रा बच्चे के वजन पर निर्भर करती है। आपके डॉक्टर इस दवा की मात्रा, लेना के तरीका और कितने समय तक देनी है, इसके बारे में बताएगें। यह कडवी दवा है। यदि बच्चे को टेबलेट लेने में परेशानी होती है तो उसका स्वाद बदलनेके लिए मीठी चीजों (शहद, चीनी, जूस) का उपयोग किया जा सकत है । प्रेड्नीसोलोन सीरप के रुप में भी मिलती है।
दैनिक उपचार
इलाज शुरु होने पर पहले चार से छः सप्ताह तक रोज निश्चित मात्रा में प्रेड्नीसोलोन को 2-3 खुराको में बाँटकर दिया जाता है। गोलियों को एक गिलास दूध अथवा कुछ खाने के साथ लेना चाहिए।
दैनिक उपचार के कुछ दिनों के पश्चात ही बच्चा पूर्ण रुप से ठीक हो जाता है । सूजन समाप्त हो जाती है और पेशाब में प्रोटीन आना रुक जाता है। इस अवस्था को remission कहते है। दैनिक उपचार पूरा हो जाने के बाद प्रेड्नीसोलोन को एक एक दिन छोडकर देते है।
एक दिन छोड़ के दवा देना
प्रेड्नीसोलोन की सारी खुराक एक साथ प्रातः 8-9 बजे, एक-एक दिन छोड़कर दी जाती है। इस प्रकार से दो खुराकों के बीच का अंतर 48 घंटो का होता है। इसकी टेबलेट को एक गिलास दूध के साथ देना चाहिए। अगर पेट में दर्द हो तो एन्टासिड (डायजीन या जैलूसिल) का उपयोग भी किया जा सकता है। यह इलाज 4-6 सप्ताह के लिए दिया जाता है और इसके बाद या तो इसे बंद कर दिया जाता है या धीरे-धीरे कम कर दिया जाता है।
सूजन का उपचार
यदि बच्चे मे सूजन अधिक है तो इसको कम करने के लिये इलाज की आवश्यकता होगी। खाने मे नमक का परहेज, दवाईयां (diuretic) इलाज की आवश्यकता पड़ सकती है।>
नमक का परहेज
सूजन होने पर बच्चे को खाने में नमक कम मात्रा में देना चाहिए। खाने में जितना नमक पड़ता है (दाल, सब्जी आदि में) वह दे सकते है। अतिरिक्त नमक या नमकीन स्नैक्स (आलू, चिप्स, भुजिया) न दें। सूजन उतर जाने के बाद बच्चा सामान्य खाना खा सकता है। यह समझना जरुरी है कि नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम नमक खाने से नहीं होता। बिना जरुरत नमक का उपयोग कम करने से कोई लाभ नहीं होगा। यदि बच्चे का रक्तचाप अधिक है तब खाने में नमक कम कर देना चाहिए। इस बारे में डॉक्टर की सलाह मानें।
डाईयूरेटिक्स
डाईयूरेटिक्स ऐसी दवाईयां है जो शरीर में सूजन कम करने के काम आती है । अक्सर lasix दी जाती है । लेसिक्स की सुबह एक खुराक ही काफी होती है। यदि सूजन बहुत ज्यादा हो तो लेसिक्स दो बार दे सकते है । इस के अलावा कुछ अन्य डाईयूरेटिक्स जैसे aldactone, thiazide और metolazone भी दिए जाते है । सूजन कम हो जाने पर इन दवाओं की मात्रा कम कर दी जाती है और बाद में बंद कर दी जाती है।
इन दवाओं को अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए। यदि बच्चे को दस्त या उल्टी हो रही है तो डाईयूरेटिक्स का उपयोग तुरन्त बंद कर दें और डॉक्टर की सलाह लें।
एलब्युमिन इन्फयू़जन
यदि बच्चे में बहुत सूजन है, उसके पेट मे पानी इक्ठ्ठा हो गया है और उसके खून मे एलब्युमिन की (ब्लड ऐलब्युमिन) मात्रा बहुत कम है, तो उसे ऐलब्युमिन इन्फयू़जन दिया जा सकता है। ऐलब्युमिन को खून की नसो में (IV) दिया जाता है। यह कुछ समय के लिए रक्त में प्रोटीन को बढ़ाने में सहायक होता है और पेशाब की मात्रा को बढ़ाता है। इसके परिणामस्वरुप सूजन में कमी आती है । ऐलब्युमिन इन्फयूजन महंगा होता है और इसका उपयोग तभी करते है जब अन्य दवाओं से सूजन कम नहीं होती।
आहार
बच्चें को अधिक प्रोटीन वाली चीजें खिलानी चाहिएं (जैसे दूध और दूध से बनी चीजें, दाल, चना, सोयाबीन, अण्डा, मीट, मछली आदि)। प्रोटीन की अतिरिक्त मात्रा केवल तभी जरुरी है जब बच्चे के पेशाब में अधिक मात्रा में प्रोटीन हो। इसके पश्चात् उसे सामान्य आहार चाहिए और किसी विशेष तरह के आहार की आवश्यकता नहीं है।
सामान्य देखभाल और सावधनियां
एक बार बच्चे के पेशाब में प्रोटीन आना बन्द हो जाए तो यह समझें कि बच्चा स्वस्थ हो गया है। वह सामान्य काम कर सकता है। स्कूल जाना शुरु कर सकता है और खेल-कूद में भाग ले सकता है। खाने पीने का भी कोई विशेष परहेज नहीं है। उसके साथ एक सामान्य बच्चे की तरह व्यवहार करना चाहिए। ज्यादा बिगाड़े नहीं।
प्रेडनीसोलोन लेने से बच्चे में संभावित इन्फेक्शन
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम से पीड़ित बच्चे में इन्फैक्शन की संभावना अधिक होती है, विशेषकर जब वह अधिक मात्रा में प्रेडनीसोलोन ले रहा हो। सामान्यतः इन्फैक्शन मामूली होता है जैसे कि जुकाम, गले में खराश एवं दस्त रोग। ऐसा होने पर डॉक्टर से परामर्श और उपचार कराना चाहिए। कभी-कभी यह इन्फैक्शन गंभीर होता है और तीव‘ गति से फैलता है।
यदि बच्चे के पेट में दर्द, उल्टिया, दस्त एवं बुखार है तो इसके लिए डॉक्टर से शीध‘ संपर्क करना चाहिए। यदि उसे सिरदर्द, उल्टियां उनींदापन एवं ज्वर है तो उसे अस्पताल ले जाना चाहिए। यदि बच्चे को सूजन अधिक है और पेट मे पानी है तो उसे गंभीर इन्फैक्शन की संभावना अधिक रहती है । इस तरह के इन्फैक्शन के इलाज में देरी खतरनाक सिद्ध हो सकती है।
जो बच्चा प्रेडनीसोलोन आदि दवाईयां ले रहा हो, उसे खसरा, चिकन पॉक्स होने पर गंभीर समस्या हो सकती है । यदि आपका बच्चा किसी ऐसे बच्चे के संपर्क में आता है जिसे ऐसे रोग है, तो इसकी जानकारी तुरंत डॉक्टर को देनी चाहिए।
डॉक्टर को देनी चाहिए।
टीकाकरण को कुछ समय के लिए रोकना
जब तक बच्चा प्रेडनीसोलोन ले रहा हो तब तक लाइव टीके (जैसे कि पोलियो, खसरा-मम्पस-रुबेला, चिकन पॉक्स) नहीं देने चाहिए। यदि आवश्यक हो तो टैटनस या रेबी़ज का टीका लगवा सकते है । डॉक्टर आपको टीकाकारण के उपयुक्त समय के लिए सलाह देंगे।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में इलाज के समय या इसके बाद देखभाल
प्रेडनीसोलोन शुरु करने के कुछ ही दिनों बाद सूजन उतर जाती है और पेशाब में प्रोटीन आना बन्द हो जाता है (निल टेस्ट)। बच्चा प्रेडनीसोलोन उपचार समाप्त होने के बाद पूर्ण रुप से स्वस्थ हो जाता है और कई माह तक या और भी अधिक समय तक स्वस्थ रहता है। इस अवधि के दौरान उसे बिलकुल सामान्य बच्चा ही समझना चाहिए और उसे किसी विशेष देखभाल की जरुरत नहीं होती । स्कूल जाने एवं खेलकूद में भाग लेने के लिए उस पर कोई रोक-टोक नहीं लगानी चाहिए । जैसा व्यवहार परिवार के अन्य बच्चों के साथ किया जाता है, वैसा ही उसके साथ करना चाहिए।
रिलैप्स (relapse)
अधिकतर बच्चों में, नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम दुबारा हो जाता है। इसका पता आंखो के चारों और सूजन होने से चलता है, जिसका यदि उपचार न कराया जाए तो यह पूरे चेहरे पर एवं शरीर के अन्य भागों पर भी फैल जाती है। पेशाब की जाँच से पुनः 3+ से 4+ प्रोटीन का पता चलता है। इस स्थिति को रिलैप्स कहते है। चेहरे पर सूजन आने से पूर्व रिलैप्स का पता लगाया जा सकता है, यदि सप्ताह में एक या दो बार पेशाब में प्रोटीन का परीक्षण करते रहें। सूजन के प्रकट होने से पहले कई दिनों तक पेशाब में प्रोटीन आता रहता है और इसकी मात्रा धीरे-धीरे बढ़ती जाती है (1+ से 2+ /3+ और 4+)। अक्सर रिलैप्स खांसी, जुकाम या किसी अन्य इन्फेक्शन से होता है, परन्तु कभी-कभी इसका कोई कारण नहीं होता।
रिलैप्स का इलाज
अक्सर जब बच्चे को इन्फैक्शन (जुकाम, खांसी आदि) हो तो पेशाब में प्रोटीन आने लगता है (1+ या 2+) पर करीब सात से दस दिन में इन्फैक्शन ठीक होने के साथ अपने आप बन्द हो जाता है और टेस्ट निल या ट्रेस दिखाता है। इसलिए यह बहुत जरुरी है कि जब भी कोई इन्फैक्शन हो तो रो़ज पेशाब की जांच करे। यदि पेशाब में 1+ या 2+ प्रोटीन धीरे-धीरे कम हो कर निल हो जाए, तब कोई दवाई की आवश्यकता नहीं होती है । इसको रिलैप्स नहीं मानते।
कभी-कभी, इऩ्फेक्शन ठीक होने के साथ अपने आप बन्द हो जाता है और टेस्ट निल या ट्रेस दिखाता है । इसलिए यह बहुत जरुरी है कि जब भी कोई इन्फैक्शन हो तो रो़ज पेशाब की जांच करे। यदि पेशाब में 1+ या 2+ प्रोटीन धीरे-धीरे कम हो कर निल हो जाए, तब कोई दवाई की आवश्यकता नहीं होती है । इसको रिलैप्स नहीं मानते ।
कभी-कभी, इऩ्फेक्शन के ठीक होने के बाद भी प्रोटीन का आना जारी रहता है और इसकी मात्रा बढ़ती जाती है और 3+/4+ टेस्ट आने लगता है । एक या दो सप्ताह बाद चेहरे पर सूजन आ जाती है तथा यह धीरे-धीरे बढ़ती जाती है । ऐसी स्थिति को रिलैप्स कहते है। इसके इलाज के लिए प्रेडनीसोलोन लेना जरुरी है और इसे सूजन ज्यादा बढ़ने से पहले ही शुरु करना चाहिए। इस दवा को शुरु में प्रतिदिन 1-2 खुराकों में दिया जाता है । दवा की मात्रा बच्चे के वजन पर निर्भर करती है। यदि सूजन बढ़ जाये को लैसिक्स दवा कुछ दिनों तक दी जा सकती है । प्रतिदिन दवा का इलाज करीब दो सप्ताह तक चलता है और पेशाब की जांच में प्रोटीन धीरे-धीरे समाप्त (निल) हो जाता है। इस स्थिति में प्रतिदिन का इलाज बदलकर प्रेडिनिसोलोन की एक एक दिन छोड़कर चार से छः सप्ताह तक देकर बन्द कर देते है।
यह बहुत जरुरी है कि रिलैप्स का इलाज जल्दी शुरु किया जाये, डॉक्टर से संपर्क रखें। यदि सूजन बढ़ जाए और बच्चे के पेट में पानी जमा हो जाए, तब उपचार मुश्किल होता है तथा इससे कई जटिलताएं उत्पन्न हो सकती है ।
रिलैप्स का बार-बार होना
अक्सर ऐसा होता है कि बच्चे को कई महीनों तक रिलैप्स न हो । कुछ बच्चों को एक साल में एक या एक से ज्यादा रिलैप्स होते हैं। प्रत्येक रिलैप्स का इलाज पहले बताए गए तरीकों से प्रेडीनीसोलोन से ही होता है।
यदि एक साल में तीन से ज्यादा बार रिलैप्स हो जाएं तो उसके लिए इलाज के अन्य तरीकों पर विचार किया जाता है । सबसे आम तरीका है कि बच्चे को प्रेडनीसोलोन की थोडी सी खुराक एक दिन छोडकर एक साल या उससे भी अधिक समय के लिए दी जाए। यदि इस उपचार से रिलैप्स नहीं सकते, तो अन्य उपचार किये जाते है । इस इलाज की जरुरत के बारे में डॉक्टर आपको पूरी तरह समझाएंगे। इसमें कुछ दवाईया है।
1. रेमिशन लाने के लिए इंजेक्शन द्वारा मिथाइलप्रेडनीसोलोन अथवा डेक्सामेथासोल दिया जाता है।
2. लम्बे समय के लिए लिवामिसोल की गोलियां दी जाती है।
3. साइक्लोफॉसफामाइड यह एक औषधि है जो कि अक्सर विभिन्न प्रकार के गंभीर रोगों के इलाज में दी जाती है नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में इसका प्रयोग कई वर्षो से किया जा रहा है। यह औषधि पूरे विश्व में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में इसका प्रयोग कई वर्षो से किया जा रहा है। यह औषधि पूरे विश्व में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम से पीड़ित अधिकतर बच्चों में बहुत लाभदायक पाई गई है। अक्सर यह गोलियां प्रेडनीसोलोन के साथ 12 सप्ताह के लिए दी जाती है। इस औषधि के खराब असर तथ अन्य सावधानियां आपके डॉक्टर आपको विस्तार से बताएंगे।
4. साईक्लोस्पोरिन यह औषधि मुख्यतः गुर्दे और जिगर प्रत्यारोपण (ट्रान्सप्लांट) वाले मरीजों को दी जाती है । परन्तु अन्य कई स्थितियों में भी यह लाभदायक पाई गई है । यह नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में बार बार रिलैप्स के रोकने में भी प्रभावकारी है। यदि बच्चे को साईक्लोस्पोरिन देना पड़े तो आपके चिकित्सक इसके बारे में आपको समझा देगें।
5. माइको़फेनोलेट - यह दवा भी कभी-कभी प्रयोग की जाती है।
प्रेडनीसोलोन के खराब असर
प्रेडनीसोलोन के प्रयोग के बारे में अक्सर गलत धारणाएं है। प्रेडनीसोलोन नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के उपचार के लिए सारे विश्व में दिया जाता है, तथा विशेषज्ञ इसकी मात्रा तथा इसके दुष्प्रभाव से पूरी तरह परिचित है। कम मात्रा में देने से समस्याएं कम होती है। दवा बंद करने के बाद खराब असर धीरे-धीरे खत्म हो जाते है।
पेट में गड़बड़ - प्रेडनीसोलोन की वजह से कई बार पेट में गड़बड़ी (दर्द, जलन, उल्टी) होती है। बच्चे को प्रेडनीसोलोन हमेशा खाने के बाद दें । थोड़े समय के लिए अन्य दवा (रेनीटीडीन) अथवा एन्टेसिड (जैसे डाइजीन, जेल्यूसिल, म्यूकेन) प्रेडनीसोलोन के साथ दी जाती है।
ब्लड प्रेशर में वृद्धि - प्रतिदिन वाले प्रेडनीसोलोन उपचार के दौरान ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) ध्यान से देखा जाना चाहिए, क्योंकि इसमें वृद्धि हो सकती है। कभी-कभी बढ़े हुए ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए दवाईयों की जरुरत पड़ सकती है।
भूख में कमी - जब प्रेडनीसोलोन की खुराक कम की जाती है तो कुछ बच्चों की भूख बढ़ जाती है और वह हर समय खाना मांगते है। जब बच्चा प्रेडनीसोलोन ले रहा हो तब उसे मक्खन, तेल, तला हुआ भोजन, आईस् क्रीम इत्यादि कम दें। दवा की मात्रा कम होने पर भूख पहले जैसी हो जाएगी ।
Cushingoid features - रोजाना प्रेडनीसोलोन उपचार लेने पर व़जन बढ़ने से चेहरा, गर्दन, कंधे तथा पेट भारी दिखाई पड़ते हैं, जबकि बाजू तथा टांगे पत़ली दिखती हैं। गाल ज़्यादा फूले-फूले लगते हैं और उन पर लाली आ जाती है । किशोर बच्चों को मुहांसे अधिक हो सकते हैं प्रेडनीसोलोन को बंद करने के बाद यह सब धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। यदि प्रेडनीसोलोन की अधिक मात्रा लगातार दी जाती है तो उससे कूल्हों, पेट तथा जांधों के ऊपर कभी-कभी जामुनी रंग की लकीरें दिखाई पड़ती हैं। अत्यधिक वजन बढ़ने को रोकना चाहिए।
बालों की वृद्धि - चेहरे, बाजू तथा टांगो पर बाल ज्यादा दिखाई देने लगते हैं।
बच्चों की लंबाई में कमीः प्रेडनीसोलोन यदि बहुत लम्बे समय तक या बार-बार देनी पड़े तब लंबाई में वृद्धि की गति धीमी पड़ जाती है। बच्चों की ऊंचाई नियमित रुप से नापते रहना चाहिए। यदि ऊंचाई कम गति से बढ़ ररही है तो अन्य दवाइयां प्रयोग की जाएंगी।
अन्य दुष्प्रभाव - कुछ बच्चों के म़िजाज तथा व्यवहार में बदलाव दिखाई पड़ता है। प्रेडनीसोलोन के लेने पर वे संभवतः अत्यधिक खुश होंगे या सुस्त होंगे। प्रेडनीसोलोन लंबे समय तक लेने के परिणाम स्वरुप संभवतः आंखो के लैंस पर छोटे धब्बे (सफेद मोतियां,) आ सकते है। कभी-कभी खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा पेशाब परीक्षण से ग्लूकोज का पता लगता है।
यह समझना चाहिये कि प्रेडनीसोलोन से गंभीर समस्या तभी होती है जब इसकी अधिक मात्रा में और का़फी लंबी अवधि तक प्रयोग किया जाए । इन समस्याओं के बढ़ने से पहले ही डॉक्टर कोई अन्य उपचार करेंगे। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में प्रेडनीसोलोन ही प्रथम उपचार है । अन्य औषधियां कठिन परिस्थितियों में दी जाती है ।
इलाज (उपचार) में माता-पिता की जिम्मेदारी
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम एक ऐसा रोग है जो अक्सर कई साल तक चल सकता है । उचित इलाज के बावजूद भी यह बीमारी हर बच्चे में कम समय में ठीक नहीं होती। मिनिमल चेंज नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम (जिसमें प्रेडनीसोलोन द्वारा रेमिशन हो जाता है) वाले बच्चे रेमिशन में पूरी तरह सामान्य रहते हैं। फिर भी उचित देख भाल और खाने-पीने में सावधानी आवश्यक है। कई अन्य प्रकार के नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में बच्चे को संभवतः कई समस्याएं आ सकती हैं जैसे कि ब्लड प्रैशर का बढ़ना इत्यादि । बच्चे के इलाज में माता-पिता का सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है।
डायरी बनाना
माता-पिता को बच्चे के उपचार से संबधित डायरी बनाना चाहिए। जब भी बच्चे को डॉक्टर को दिखाएं यह डायरी साथ लेते जाएं।
पूर्ण और सही रिपोर्ट डॉक्टर को बच्चे के स्वास्थ्य और विकास के बारे में जरुरी जानकारी प्रदान करती है। उपचार अधिकतर इन्ही रिपोर्ट पर आधारित होता है तथा रक्त जांच की आमतौर पर आवश्यकता नहीं पड़ती है। रेमिशन की अवस्था में 6-7 दिन में एक बार पेशाब की जांच का़फी है। इन्फैक्शन आदि के दौरान रो़ज जांच करना उचित है।
माता-पिता को इस उपचार को समझना तथा इलाज व दवाइयों से पूर्ण रुप से परिचित हो जाना चाहिए। बच्चे को बिना डॉक्टर की सलाह के जो भी दवा दें, उसे लिख लें। डॉक्टर के सभी निर्देशों का ध्यान रखना चाहिए।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम संभवतः कई वर्षो तक चल सकता है।
अधिकतर बच्चों में यह रोग दोबारा होता है, कुछ को यह रिलैप्स बार-बार हो जाते हैं।
अन्ततः कई वर्ष पश्चात् अधिकतर बच्चे पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
सही देखभाल से बच्चा ठीक रहेगा, और अन्य बच्चों की तरह उसका पालन-पोषण होगा।
नियमित रुप से पेशाब में प्रोटीन की जांच करने से रिलैप्स का पता आरंम्भ में ही लग जाएगा, तथा शीघ‘ता से उसका उपचार हो जाएगा। इससे बच्चे को स्कूल जाने में रुकावट नहीं आएगी।
चिकित्सा की अन्य पद्धतियां (जैसे होम्पोपैथी या यूनानी लाभदायी नहीं हैं, तथा इससे नुकसान भी हो सकता है।)
डॉक्टर से कितनी बार परामर्श करना चाहिए?
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम से ग‘स्त आपके बच्चे की देखभाल करना गुर्दा रोग विशेषज्ञ और बच्चे के अपने बालचिकित्सक (जो पहले से ही बच्चे को देख रहे हैं) की संयुक्त जिम्मेदारी है। यदि बच्चा ठीक भी है तो भी उसे गुर्दा रोग विशेषज्ञ को प्रत्येक 6 माह में दिखा लें। यदि बच्चे को बीमारी पुनः (रिलैप्स) आती है तो उसे जल्दी से जल्दी दिखाना चाहिए। बालचिकित्सक बच्चे की सामान्य चिकित्सा (टिके आदि लगाना, किसी अन्य रोग का उपचार) उपलब्ध करवांएगे तथा अवश्यकता-नुसार बच्चे की स्थिति के संबंध मे गुर्दा विषेशज्ञ से चर्चा करेंगे।
यदि बच्चे के पेशाब में कुछ दिनों के लिए 2+ या अधिक प्रोटीन आता है तो बालचिकित्सक से परामर्श करना चाहिए । तत्काल परामर्श करना आवश्यक है, यदिः
1. आपका बच्चा चिकन पॉक्स, खसरे (मी़जल्स) से ग‘स्त बच्चे के सम्पर्क में है या आपके बच्चे को ही यह बीमारी हो जाती है।
2. यदि उसे दस्त, उल्टी, पेट या सिर में दर्द, तेज ज्वर हो या वह सुस्त लगे।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम कम पूरी तरह ठीक ह जाता है?
अधिकतर बच्चें, जिन्हे ‘मिनिमल चेंज‘ नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम है, वह किशोरावस्था (12-16 साल की आयु) आने तक, या उससे पहले भी, ठीक हो जाते हैं। और गुर्दे को कोई हानि नही पहुंचती। मगर यह बताना संभव नहीं है कि किसी एक बच्चे में यह किस उम‘ में पूरी तरह ठीक होगी। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की ’गंभीरता’ नितान्त भिन्न है और कुछ बच्चों को बार-बार यह रोग (रिलैप्स) हो जाता है जबकि अन्य को यह रोग दोबारा नहीं या कभी-कभी ही होता है। इस उपचार का उद्देश्य रिलैप्स का इलाज करना है तथा औषधि का कम से कम मात्रा में प्रयोग करके बच्चे को रेमिशन में रखना है। परिवार का ध्यान अधिकतर, बच्चे की वृद्धि और विकास तथा सामान्य गतिविधियों (शिक्षा, खेलों में भाग लेना, आदि) पर होना चाहिए। माता-पिता को बिना मांगी सलाह की उपेक्षा करनी चाहिए। कोई भी स्पष्टीकरण या जानकारी केवल बालचिकित्सक से लें।
इस रोग के विषय में अन्य पूछे जाने वाले प्रश्न इस प्रकार हैंः-
प्र. क्या रोगी के दोनों ही गुर्दे इससे प्रभावित होते हैं?
उ. हाँ, दोनों गुर्दो से प्रोटीन का रिसाव होता है।
प्र. क्या मेरा बच्चा व्यायाम और खेलों में भाग ले सकता है?
उ. हां, आपका बच्चा अपने सामर्थ्यानुसार सभी खेलों में भाग ले सकता है।
प्र. क्या इसका कोई शल्य चिकित्सा (सर्जरी) उपचार है?
उ. नहीं, क्योंकि यह रोग अति सूक्ष्म या आण्विक स्तर पर है।
प्र. क्या इसमें गुर्दा नष्ट होगा तथा गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होगी?
उ. नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के सामान्य प्रकार से ग‘स्त अधिकांश बच्चों में (प्रेडनीसोलोन देने पर ठीक हो जाते हैं) गुर्दे नष्ट होने का कोई खतरा नहीं हैं। दूसरे प्रकार के असाधारण नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में (जो बच्चों में कम होते हैं) गुर्दे खराब हो सकते हैं और इनका उचित इलाज अत्यंत आवश्यक हैं।
पेशाब में प्रोटीन की जांच
पेशाब में प्रोटीन की जांच करना इस बीमारी के इलाज का जरुरी अंग हैं। जांच करना बहुत आसान है। सुबह का पहला पेशाब एक साफ बोतल में लें। इसका रंग हल्का पीला होना चाहिए। पेशाब की दवा (जैसे लैसिक्स) लेने के बाद पेशाब एक दम पानी की तरह हो जाता है और जांच के लिए ठीक नहीं होता है।
जाँच करने के दो खास तरीके हैं।
परखनली में गर्म करना
कांच की एक साधारण परखनली (टेस्ट ट्यूब) को आधा या दो तिहाई पेशाब से भर लें, नीचे से पकड़े और थोड़ी तिरछी रखें। केवल ऊपर के एक या दो सैंटीमीटर हिस्से को एक स्पिरिट लैम्प या गैस पर गर्म करें (मोमबत्ती का प्रयोग भी कर सकते हैं, पर कालिख को पोंछना होगा) परखनली को हिलाना नहीं है।
अगर पेशाब में प्रोटीन है तो गर्म किया गया हिस्सा सफेद हो जाता है परखनली में, गर्म किए गए ऊपर के पेशाब की तुलना नीचे के हिस्से में रखी पेशाब से कर सकते हैं । सफेदी को देखकर प्रोटीन की मात्रा का पता लगता है तथा उसका वर्गीकरण किया जा सकता है।
शून्य निल = उबालने के पश्चात पेशाब में कोई परिवर्तन नहीं
1+ = हल्की धुन्ध
2+ = स्पष्ट सफेद (निश्चित सफेद)
3+ = दूध जैसा
4+ = दहीं जैसा (सफेद और गाढ़ा)
वर्गीकरण कठिन नहीं है तथा थोड़े अभ्यास के पश्चात कोई भी इसमें निपुण हो जाता है। फिर भी यह कार्य थोड़ा बोझिल है और अधिकतर माता-पिता डिपस्टिक से जांच करते हैं।
डिपस्टिक से जाँच
युरीस्टिक्स या एल्बयूस्टिक्स जाँच ज्यादा सुविधाजनक है लेकिन ये मंहगी पड़ती है । केमिकल लेपित स्ट्रिप को पेशाब में डुबाया जाता है, तथा बिना विलंब उसे बाहर निकाला जाता है । इस स्ट्रिप के रंग में हुए किसी भी परिवर्तन की तुलना बोतल के लेबल पर अंकित रंग से की जाती है । निल (शून्य) से लेकर 4+ वाले परिवर्तन को आसानी से देखा जा सकता है ।
24 घंटे के पेशाब को जमा करना
24 घंटे की अवधि के दौरान किए हुए सारे पेशाब के इकट्ठा करना महत्वपूर्ण है ।
1. प्रातः 8 बजे से आरम्भ कर दें। (बच्चा प्रातः 8 बजे पेशाब करता है । इस पेशाब को फेंक दें।)
2. इसके पश्चात् जितनी बार भी बच्चा पेशाब करे, वह सब एक सा़फ बोतल में जमा कर लें । जब बच्चा पेशाब करने जाए तब आप उसके साथ जाएं ताकि यह निश्चित हो कि पेशाब को पूरी ततरह एकत्र कर लिया गया है।
3. अगले दिन जब बच्चा 8 बजे प्रातः पेशाब करता है तो इसे जा कर लें।
4. एकत्र किए हुए सारे पेशाब को प्रयोगशाला में लाएं। विकल्पतः आप एक बड़े स्वच्छ गिलास या प्लास्टिक के कंटेनर में सभी नमूनों को मिश्रित कर सकते हें । पेशाब की कुल मात्रा को सही प्रकार से लीटर और मि.ली. में नाप लें । लगभग 100 मि.ली पेशाब प्रयोगशाला में लाएं।
कल्चर के लिए पेशाब का सैम्पल लेना
प्रयोगशाला से एक विशेष स्टेराईल बोतल लें। किसी भी अन्य बर्तन में कल्चर के लिए पेशाब का सैम्पल न लें । पेशाब की जगह को पानी और साबुन से साफ कर, बच्चे को पेशाब करने के लिए कहें। शुरु के पेशाब को निकल जाने दें और बीच के पेशाब को बोचल में लें । इस सैम्पल को कमरे के तापमान पर नहीं छोड़ना चाहिए। यदि सैम्पल अस्पताल में प्राप्त किया गया है तो इसे शीघ‘ता से डॉक्टर या टेकनीशियन को साँप दें। यदि घर पर एकत्र किया गया है तो इसे रेफि‘जरेटर में 2-8 डिग्री से. में रखना चाहिए और थर्मस ़फ्लास्क में ब़र्फ पर प्रयोगशाला ले जाना चाहिए। कल्चर के परिणाम 48 घंटे बाद मिलते हैं ।
गुर्दे की बायॉप्सी
एक विशेषज्ञ केन्द्र में बायॉप्सी की जाती है और अनुभवी डॉक्टर इस जांच को करते है।
गुर्दे का स्थान देखने के लिए पेट का अल्ट्रासांउड किया जाता है । बायॉप्सी करने से पहले विशेष रक्त परीक्षण (ब्लीडिंग टाइम, क्लौटिंग टाइम प्रोथ‘ॉम्बिन टाइम, प्लेटलेट कॉऊंट) करना आवश्यक होता है। बायॉप्सी के दौरान बच्चे को शांत किया जाता है जिससे कि वह हिले-डुले नहीं। इसके लिए कुछ समय के लिए बच्चे को बेहोश करना आवश्यक होता है। बायॉप्सी नीडल पीठ में गुर्दे के स्थान पर डाल कर गुर्दे का एक छोटा सा पीस (चावल के बराबर) निकाला जाता है जिसे माइक्रोस्कोप के द्वारा देखते हैं।)
बायॉप्सी करने के पश्चात कभी-कभी पेशाब में खून आ जाता है जो एक दो बार के बाद सा़फ हो जाता है। इस देख-भाल के लिए बच्चे को पूरी रात अस्पताल में रखा जाता है। बायॉप्सी के परीक्षण के लिए विशेष तरीकों की आवश्यकता होने के कारण बायॉप्सी की रिपोर्ट आने में 5 से 10 दिनों का समय लगता है। यदि आपके बच्चे को बायॉप्सी की आवश्यकता है तो आपको इस प्रकि‘या और संभावित जटिलताओं के बारे में सूचित किया जाएगा। बायॉप्सी परिणाम और आगे के उपचार के विषय में डॉक्टर आपसे चर्चा करेंगे।
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