General physiology ICF and ECF

Basic organisation of human body
Physiology, biology की वह branch है जिसमें हम यह समझते हैं कि शरीर एवं इसके विभिन्न अंग किस प्रकार कार्य करते हैं (Latin physio = physical = शरीर से सम्बंधित) । इसको समझने के लिए सर्वप्रथम हमें शरीर की बनावट समझनी पड़ेगी।
Organ system - शरीर में विभिन्न कार्यों को करने के लिए भिन्न-भिन्न organ systems होते हैं। यह विभिन्न ऑर्गन्स का वह समूह है जो किसी एक प्रकार के कार्य को पूर्णरूप से संपन्न करा पाने में पूरी तरह से सक्षम है। जैसे gastrointestinal tract (GIT), भोजन के पाचन (digestion) एवं एब्जॉर्पशन के लिए; respiratory system, वातावरण से ऑक्सीजन को ग्रहण करने एवं कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालने के लिए; excetory system, विभिन्न मेटाबॉलिक wate products को शरीर के बाहर निकलने के लिए; cardiovascular system, उपरोक्त तीनों सिस्टम्स के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिए जिससे भोजन से प्राप्त पोषक तत्व एवं फेफड़ों से प्राप्त ऑक्सीजन को शरीर की प्रत्येक सेल तक ले जाने एवं वहां से उत्पन्न कार्बन डाई ऑक्साइड को फेफड़े एवं मेटाबॉलिक waste products को किडनी तक ले जाने के लिए; reproductive system, संतान उत्पन्न करने के लिए; एवं nervous तथा endocrine systems, उपरोक्त सभी सिस्टम्स के मध्य संतुलन बैठाने एवं उनके नियंत्रण के लिए।
Organ - तुम यह भी जानते हो कि प्रत्येक ऑर्गन सिस्टम पूरा एक समान नहीं होता। इसके विभिन्न कार्यों को संपन्न कराने के लिए इसमें भी अनेक विभाग होते हैं जिन्हें ऑर्गन्स कहते हैं। जहाँ ऑर्गन सिस्टम कोई एक प्रकार का कार्य संपन्न करा सकता है, इसका एक ऑर्गन उस कार्य का एक भाग संपन्न करता है। उदाहरण के रूप में GIT का कार्य पाचन एवं एब्जॉर्पशन है जिसमें इसका प्रत्येक ऑर्गन अलग-अलग इसका एक कार्य संपन्न कराता है जैसे, esophagus केवल भोजन को ले जाने के लिए, stomach इसको संग्रहित करने एवं पीसकर आकार में छोटा करने के लिए एवं intestine इससे पोषक तत्वों को एब्जॉर्प करने के लिए।
Tissue - अब यदि एक ऑर्गन सिस्टम के अलग-अलग ऑर्गन्स भी अलग-अलग कार्य करते हैं तब निश्चित रूप से उनकी बनावट भी भिन्न-भिन्न होती होगी। इसके लिए, यह ऑर्गन्स भिन्न-भिन्न प्रकार के tissues से बने होते हैं, जैसे stomach में पीसकर आकार में छोटा करने के लिए muscular tissue एवं intestine में एब्जॉर्पशन के लिए glandular एवं mucosal tissue ।
Cell - प्रत्येक टिशू, किसी एक प्रकार की ही सेल्स से बनता है जो किसी एक प्रकार का कार्य करने में सक्षम होती हों। वास्तव में यह सेल्स ही शरीर की structural एवं functional unit होती हैं।
Milieu interieur
जीवन की उत्पत्ति जल में हुई थी। सर्वप्रथम unicellular organisms बने जो विकास के साथ multicellular होते चले गए। यूनीसेलुलर ऑर्गनिज्म में एक ही सेल, सभी प्रकार के कार्य करने में सक्षम थी परन्तु जब विकास के साथ मल्टीसेलुलर शरीर में उसे विशिष्ट कार्य करने की आवश्यकता पड़ी तब एक ही प्रकार की सेल से अलगअलग प्रकार के विशिष्ट कार्यों को कर पाना संभव नहीं हुआ। इससे सेल्स में बदलाव आना आरम्भ हुए जिससे अलग-अलग कार्यों को करने वाली विशिष्ट (specialised) सेल्स का बनना प्रारम्भ हुआ। इन्हीं एक प्रकार की सेल्स का समूह टिशू कहलाया। विकास के साथ अनेक प्रकार के टिशूज, उनके जुड़ने से ऑर्गन्स एवं उनके जुड़ने से ऑर्गन सिस्टम बनते चले गए। इतने लंबे विकास (evolution) के बाद भी यह तथ्य आधुनिक मनुष्य तक में सत्य है। Fertilization, embryonic life, fetal development, इत्यादि सभी जल (लिक्विड वातावरण) में ही होते हैं। संपूर्ण शरीर का मूल मीडियम लिक्विड (जल) ही है, जो मानव शरीर का लगभग 60% भाग बनाता है। इसमें से अधिकांश (2/3) सेल्स के भीतर, intracellular fluid (ICF), एवं शेष (1/3) cells के बाहर, extracellular fluid (ECF), के रुप में रहता है। यह ECF किसी विशाल समुद्र के समान ही तो है जिसमें विभिन्न cells बीच बीच में डूबी हुई हैं। इसी लिए ECF को शरीर का internal sea भी कहते हैं। वास्तव में ECF का composition सृष्टि के प्रारम्भ में रहे primordial sea के समान ही लगता है जो पुनः हमें इस तथ्य की याद दिलाता है कि, जीवन की उत्पत्ति जल में हुई थी। प्रत्येक सेल के ICF का निर्धारण उसकी अपनी आवश्यकताओं के अनुसार होता है। इसके विपरीत, ECF की बनावट संपूर्ण शरीर में लगभग एक समान होता है कि जिसे शरीर का internal environment कहते हैं। यही अवधारणा वास्तव में संपूर्ण आधुनिक फिजियोलॉजी की केन्द्र बिन्दु है, जिसे Claude Bernard ने milieu interieur कहा और जिसके लिये उन्हें father of modern physiology भी कहा जाता है।
Homeostasis
सम्पूर्ण शरीर में मिलने वाले इस ECF की बनावट (composition) एक समान बनाये रखना कठिन कार्य है। मल्टीसेल्युलर ऑर्गैनिज्म्स में तो simple diffusion की प्रक्रिया द्वारा ही यह एकरूपता बनायी रखी जा सकती है परन्तु शरीर का आकार बढ़ने के साथ, simple diffusion मात्र से यह कार्य कठिन होता जाता है। छोटे जंतुओं में भी body cavity का फ्लुइड इसमें मदद कर सकता है परन्तु विशालकाय जंतुओं में इसके लिए एक अलग तंत्र का विकास करना पड़ा जो संपूर्ण शरीर में प्रवाहित होकर (circulate कर) सभी स्थानों के ECF को एक संतुलन में बनाये रखने में मदद कर सके। इस प्रकार यह रक्त ही संपूर्ण शरीर के ECF को परस्पर जोड़ता (connect करता) है, जिसके लिए इसे connective tissue कहा जाता है। ब्लड वेसेल्स में प्रवाहित होता रक्त, ECF को दो भागों में विभाजित कर देता है। प्रथम, intravascular fluid जिसे plasma कहते हैं तथा द्वितीय, extravascular fluid, जिसे सेल्स के बीच बीच में होने के कारण interstitial fluid (ISF) कहते हैं।
परन्तु केवल connected रहने मात्र से ही सम्पूर्ण शरीर के ECF की बनावट एक समान नहीं हो सकती। इसके लिए तो circulating plasma एवं ISF को परस्पर संपर्क में रहना होगा। इसीलिए, circulatory system की capillary walls एक semipermeable membrane की भांति कार्य करती हैं जिससे इन दोनों फ्लुइड्स के मध्य पदार्थों का आवागमन सरलता पूर्वक हो सके। रक्त द्वारा सम्पूर्ण शरीर के ECF (internal environment) को समान बनाये रखने की इस प्रक्रिया को ही Walter Cannon ने homeostasis कहा है।
Composition of human body
उपरोक्त कारणों से शरीर का मुख्य भाग जल का ही रहा। वास्तव में मानव शरीर (human body) का केवल 40% भाग सॉलिड (solid), परन्तु 60% भाग जल (water) ही है। इस 40% सॉलिड भाग में 18% प्रोटीन, 15% फैट एवं 7% मिनरल्स का बना होता है। इसके 60% जल में, 40% सेल्स के अंदर (intracellular fluid, ICF) एवं 20% सेल्स के बाहर (extracellular fluid, ECF) स्थित रहता है। यह 20% ECF ही शरीर का internal sea है जो पुनः दो भागों में विभाजित रहता है, 5% ब्लड वेसेल्स के अंदर (intravascular fluid) एवं 15% ब्लड वेसेल्स के बाहर (extravascular) परन्तु सेल्स के बीच-बीच में (interstitial)।
इस प्रकार, किसी 70 किग्रा के व्यक्ति में लगभग 42 किग्रा (60%) जल होता है जो 28 किग्रा (40%) ICF एवं 14 किग्रा (20%) ECF में बंटा रहता है। इस 14 किग्रा ECF में भी लगभग 11 किग्रा (15%) interstitial fluid के रूप में एवं 3 किग्रा (5%) intravascular fluid में ब्लड के प्लाज्मा के रूप में रहता है। सामान्य अवस्था में total body fluid की अत्यंत छोटी सी मात्रा transcellular fluid के रूप में मिलती है।
Composition of human body
Solid (40%) - Protein (18%) + Fat (15%) + Minerals (7%)
Water (60%) - ECF (20%) [Intravascular (5%) + Interstitial (15%)] + ICF (40%)
Body fluids
स्वाभाविक रूप से शरीर में उपस्थित जल की कुल मात्रा (total body fluid - TBF) केवल दो रूपों में ही मिल सकता है, विभिन्न सेल्स के भीतर (intracellular fluid, ICF) अथवा सेल्स के बाहर (extracellular fluid, ECF)। किसी वयस्क शरीर में जिसमें अनगिनत (लगभग 10 x 10(13)) cells होती हैं उसमें TBF का 2/3 भाग cells के भीतर (ICF) एवं 1/3 भाग cells के बाहर (ECF) के रूप में रहता है।
सेल्स के बाहर रहने वाले fluid (ECF) को भी तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
i) Interstitial fluid (ISF) - विभिन्न सेल्स के बीच-बीच में स्थित फ्लुइड - (interstitium = cells के बीच का स्थान),
ii) Intravascular fluid - सेल्स के बाहर, किन्तु वेसेल्स में स्थित फ्लुइड,
iii) Transcellular fluid - सेल्स के बाहर, किसी कैविटी में स्थित फ्लुइड
आइये इनको विस्तार में समझते हैं।
Extracellular fluid (ECF)
सम्पूर्ण शरीर के ECF की बनावट (composition) लगभग एक समान होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर के विभिन्न स्थानों पर स्थित ECF, एक दूसरे से लगातार संपर्क में रहते हैं। परन्तु यह तथ्य सुनने में थोड़ा अजीब सा लगता है। यह कैसे संभव है कि पैरों का ISF, सिर के ISF के संपर्क में हो? वास्तव में, शरीर के सभी भागों के ISF, वेसेल्स में प्रवाहित हो रहे रक्त के माध्यम से एक दूसरे से संपर्क में (connected) रहते हैं। इसीलिए तो रक्त को 'connective tissue' कहते हैं। ब्लड वेसेल्स की वैस्कुलर मेम्ब्रेन के permeable होने के कारण intravascular fluid, मेम्ब्रेन से होकर गुजरते हुए interstitium में पहुंचकर ISF से मिल सकता है एवं इसके विपरीत, ISF, वैस्कुलर मेम्ब्रेन से होकर गुजरते हुए intravascular fluid से मिल सकता है। इस प्रकार, वैस्कुलर मेम्ब्रेन की permeability के कारण ही सम्पूर्ण शरीर के ECF की बनावट लगभग एक समान रह पाती है। शरीर की सभी सेल्स इसी ECF द्वारा उत्पन्न वातावरण (internal environment या milieu interieur) में रहती हैं। शारीरिक प्रक्रियाओं के भली भांति चलते रहने के लिए यह आवश्यक है कि इस internal environment को समान बनाये रखा जाये (homeostasis: Greek home = similar; stasis = stable)। इसी homeostasis के कारण, यदि किसी स्थान पर ISF में किसी solute की मात्रा बढ़ रही हो तब कुछ ही समय में वह अधिक मात्रा वैस्कुलर मेम्ब्रेन से होकर intravascular fluid में पहुँच जाती है एवं इसके माध्यम से सम्पूर्ण शरीर के ISF में समान रूप से बंट जाती है। इसी प्रकार, यदि किसी स्थान के ISF में किसी solute की मात्रा घट रही हो तब वह solute, अन्य स्थानों के ISF से होता हुआ intravascular fluid के माध्यम से पहले के स्थान पर पहुँच जाता है एवं इस कमी को पूरा कर देता है। प्लाज्मा एवं ISF के मध्य जिन बड़े पार्टिकल्स का आदान प्रदान कैपिलरी मेम्ब्रेन के माध्यम से नहीं हो पाता, उसके लिए शरीर में एक और तंत्र का विकास हुआ जिसे lymphatic system कहते हैं। इस प्रकार यह लिम्फ भी प्लाज्मा एवं ISF के मध्य एक सेतु की भांति जोड़ने का कार्य करता है। इस प्रकार, intravascular fluids (रक्त एवं लिम्फ) पूरे शरीर के ECF की बनावट को एक समान बनाये रखने में मदद करते हैं। ECF के इस internal environment में बदलाव से ही अनेकों रोगों का आरम्भ होता है।
Intracellular fluid (ICF)
शरीर में TBW का 2/3rd भाग ICF के रूप में रहता है। प्रत्येक सेल अपनी आवश्यकतानुसार अपने ICF में मिलने वाले पदार्थों की मात्रा को निर्धारित करती है। अतः विभिन्न प्रकार की सेल्स में उसके constituents भिन्न-भिन्न होते हैं। इस पर भी विभिन्न सेल्स में उसके ICF की संरचना (composition) लगभग एक समान ही रहता है। यहाँ तक कि अत्यंत प्राचीन जंतुओं से लेकर आधुनिक मानव तक में ICF की संरचना में काफी समानता पायी जाती है। इसीलिए, विभिन्न सेल्स के भीतर उनके ICF के अलग-अलग होते हुए भी उसकी कल्पना एक large fluid compartment के रूप में की जा सकती है। शरीर की विभिन्न सेल्स की तुलना करने पर muscle cells में ICF की मात्रा सर्वाधिक एवं adipose tissues में ICF की मात्रा न्यूनतम होती है।
Intravascular fluid
नाम के अनुसार intervascular fluid वह ECF है जो वेसेल्स के द्वारा घिरा हुआ, वैस्कुलर (circulatory) सिस्टम में बहता रहता है। परन्तु पूरे के पूरे रक्त को intervascular fluid माना उचित नहीं है। रक्त का 45% भाग तो ब्लड सेल्स (RBCs, WBCs एवं platelets) का ही बना होता है। अतः, वास्तव में रक्त का शेष 55% noncellular part, प्लाज्मा ही वास्तविक intravascular fluid है (plasma = whole blood - cells) । इसी प्लाज्मा में उपस्थित जल एवं solutes, निरंतर कैपिलरी मेम्ब्रेन से होते हुए ISF के जल एवं solutes से परस्पर मिश्रित होते एवं बदलते रहते हैं। क्योंकि रक्त के cellular component में सेल्स के भीतर भी फ्लुइड (ICF) होता है अतः सम्पूर्ण रक्त भी वास्तव में ECF (प्लाज्मा) एवं ICF (ब्लड सेल्स) दोनों का ही मिश्रण है।
Interstitial fluid
शरीर के विभिन्न अंगों में सेल्स के मध्य के स्थान में उपस्थित फ्लुइड ही interstitial fluid (ISF) कहलाता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि रक्त से आने वाले समस्त पोषक पदार्थ (nutrients) एवं ऑक्सीजन इसी ISF से होते हुए ही सेल्स तक पहुँचते हैं एवं सेल्स में उत्पन्न होने वाले waste products एवं CO2 इसी ISF से होते हुए रक्त तक पहुँचते हैं। इस प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने के लिए शरीर में कैपिलरीज का एक विस्तृत जाल (capillary network) फैला रहता है जिससे कोई न कोई कैपिलरी, शरीर की अधिकाँश सेल्स के 50 माइक्रोमीटर के अंदर पहुँच जाती है।
Transcellular fluid
सेल्स के बाहर किसी कैविटी में स्थित फ्लुइड, transcellular fluid कहलाता है। यह कैविटीज शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों पर हो सकती है जैसे फेफड़ों के चारों ओर pleural cavity, हृदय के चारों ओर pericardial cavity, पेट में स्थित अंगों के चारों ओर peritoneal cavity, जॉइंट्स के चारों ओर synovial cavity एवं brain तथा spinal cord के चारों ओर sub-arachinoid space ।
Transport of fluids and other substances between different body fluid compartments
प्रत्येक सेल चारों ओर से सेल मेम्ब्रेन से घिरी होती है जिससे होकर जल तो मुक्त रूप से आ-जा सकता है परन्तु इसके semipermeable होने के कारण अन्य पदार्थों का आवागमन नियंत्रण में रहता है। इसी के कारण प्रत्येक सेल अपनी आवश्यकतानुसार जल एवं अन्य पदार्थों को अपने अंदर एकत्रित कर अपनी एक विशिष्ट संरचना तैयार कर लेती हैं जो सभी सेल्स में लगभग एक जैसी, परन्तु बाहरी extracellular compartments से पूर्णतयः अलग होती है।
Extracellular compartment के दोनों भाग, interstitial एवं intravascular compartments, परस्पर कैपिलरी मेम्ब्रेन के द्वारा विभाजित रहते हैं। यह कैपिलरी मेम्ब्रेन single cell thick capillary endothelium से मिलकर बनी होती है। Intravascular fluid एवं ISF के मध्य फ्लुइड का आवागमन इस single layered endothelium से ही होता है। सेल मेम्ब्रेन के विपरीत यह कैपिलरी मेम्ब्रेन, अपने बड़े pores के कारण अधिक permeable होती है जिससे interstitial एवं intravascular compartments के मध्य फ्लुइड एवं अधिकाँश solutes का आदान-प्रदान अधिक सुगमता से होता रहता है। कैपिलरी एंडोथीलियम की सेल्स के बीच-बीच में कुछ खाली स्थान भी छूटा रहता है जिसे gap junction, pore अथवा fenestration भी कहते हैं। यह कैपिलरी एंडोथीलियम से होकर फ्लुइड के आवागमन में और भी सहायक होता है। इसी कारण से extracellular compartment के यह दोनों भाग, कैपिलरी मेम्ब्रेन के द्वारा अलग-अलग रहने पर भी लगभग समान संरचना के होते हैं।
Role of proteins in influencing transport of fluids and ions between different body fluid compartments
Fluid transport के साथ-साथ रक्त के intravascular fluid (प्लाज्मा) में घुले हुए लगभग सभी solutes, कैपिलरी एंडोथीलियम से होकर सरलता से आ-जा सकते हैं। केवल प्लाज्मा प्रोटीन्स ही आकार में बड़े होने के कारण प्लाज्मा से निकलकर ISF में नहीं पहुँच पातीं। इसीलिए, intravascular fluid (प्लाज्मा) एवं ISF की संरचना में केवल एक ही अंतर मिलता है, intravascular fluid में प्लाज्मा प्रोटीन्स होती हैं जबकि ISF में नहीं (ISF = plasma – plasma proteins)।
ISF की अपेक्षा प्लाज्मा में अधिक मात्रा में मिलने वाली प्लाज्मा प्रोटीन्स, प्लाज्मा में कुछ अन्य परिवर्तनों को भी उत्पन्न करती हैं। ध्यान रहे, प्रोटीन के मॉलीक्यूल्स में carboxyl एवं amino groups के कारण थोड़ा ionic character भी होता है। इसी कारण से यह प्रोटीन्स किसी लिक्विड मीडियम में weak anion की भाँति व्यवहार करती हैं। क्योंकि एक anion, cations को आकर्षित करेगा जबकि दूसरे anions को दूर ढकेलता है, इसीलिए, प्लाज्मा से anions को दूर ढकेले जाने के कारण ISF की अपेक्षा प्लाज्मा में anions की मात्रा थोड़ी कम एवं cations की मात्रा लगभग 2% अधिक होती है ।
Donnan effect - ध्यान रहे, अन्य फ्लुइड्स की तुलना में ICF में प्रोटीन्स की मात्रा सर्वाधिक होती है जो plasma की अपेक्षा 4 गुना तक अधिक हो सकती है। इनके अतिरिक्त, ICF में कुछ अन्य anions, phosphates (जो मुख्यतः adenosine से AMP, ADP एवं ATP के रूप में प्रयुक्त होता है) एवं sulfates भी होते हैं जो सेल मेम्ब्रेन को पार नहीं कर पाते। यह सभी anions, सेल के भीतर कुछ अन्य cations को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और उन्हें सेल मेम्ब्रेन पार करने से रोकते रहते हैं। ICF के इन impermeant (जो cell membrane को permeate न कर सकें) anions के कारण ICF में उत्पन्न होने वाली electronegativity को Donnan effect कहते हैं।
Body fluid compartments
शरीर में कुछ मेम्ब्रेन्स, शरीर को इन अलग-अलग विभागों (compartments) में बांटने का कार्य करती हैं। शरीर के चारों ओर integument (skin, त्वचा), वेसेल्स के चारों ओर वैस्कुलर एंडोथीलियम एवं सेल्स के चारों ओर सेल मेम्ब्रेन। शरीर के इन सभी विभागों में मिलने वाले फ्लुइड्स एवं उनमें घुले हुए अनेक आयन्स एवं मॉलीक्यूल्स का परस्पर आवागमन चलता रहता है। किस विभाग से कौन सा पदार्थ (constituent) कितनी मात्रा में एवं किस तरफ जाएगा, इस बात का निर्धारण इनके बीच में स्थित मेम्ब्रेन्स ही करती हैं। इस आधार पर शरीर को चार विभागों में बांटा जा सकता है।
External environment - बाहरी वातावरण जो शरीर से बाहर है।
Internal environment - भीतरी वातावरण जो शरीर के अंदर है एवं पुनः तीन भागों में विभाजित है।
i) Vascular compartment - बाहरी वातावरण से आने वाला प्रत्येक पदार्थ शरीर के अंदर आने पर सर्वप्रथम इसी वैस्कुलर कम्पार्टमेंट में ही पहुँचता है। ध्यान रहे, भोजन जब तक GIT की lumen में है, एक प्रकार से वह शरीर के अंदर प्रवेश करता हुआ लगने पर भी, इसी बाहरी वातावरण के एक्सटेंशन में ही रहता है। Intestinal wall से एब्जॉर्ब होने के पश्चात् ही वह शरीर के भीतरी वातावरण में प्रवेश करता है जहाँ वह वैस्कुलर कम्पार्टमेंट में पहुँचता है। इसी प्रकार, respiratory tract एवं फेफड़ों में उपस्थित ऑक्सीजन भी बाहरी वातावरण के एक्सटेंशन में ही है एवं alveoli से एब्जॉर्ब होने के बाद वह भी सर्वप्रथम वैस्कुलर कम्पार्टमेंट में ही पहुँचती है। इसी प्रकार, शरीर से किसी पदार्थ को बाहर निकलने के लिए भी उसे वैस्कुलर कम्पार्टमेंट में ही पहुँचाना पड़ता है जहाँ से वह फेफड़ों (कार्बन डाई ऑक्साइड) एवं किडनी (मेटाबॉलिक वेस्ट) के द्वारा बाहरी वातावरण में पहुँच जाती है। ध्यान रहे, GIT से बिना पचा हुऐ भोजन का feces के रूप में बाहर निकलना इसमें सम्मिलित नहीं है क्योंकि वह तो कभी शरीर के भीतर एब्जॉर्ब हुआ ही नहीं।
ii) Interstitial compartment - वैस्कुलर कम्पार्टमेंट में पहुंची ऑक्सीजन एवं पोषक तत्व सीधे ही सेल्स में नहीं पहुँच जाते। यह पहले वैस्कुलर एंडोथीलियम से होते हुए interstitial fluid में पहुँचते हैं जहाँ से वह सेल मेम्ब्रेन से होते हुए intracellular compartment में पहुँचते हैं।
iii) Intracellular compartment - जहाँ ECF की संरचना पूरे शरीर में लगभग समान ही होती है (बल्कि अनेक जंतुओं में भी लगभग समान होता है), प्रत्येक सेल में ICF की संरचना उसकी अपनी आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। ICF की इस अलग संरचना का निर्धारण करने में सेल मेम्ब्रेन अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Body water
यह जानने के बाद कि शरीर की विभिन्न सेल्स के मध्य जल का आवागमन किस प्रकार होता है, आइये समझते हैं कि यह जल, किस प्रकार शरीर के विभिन्न भागों में विभाजित रहता है एवं इन भिन्न-भिन्न विभागों में जल की मात्रा किस प्रकार से नियंत्रित होती है।
शरीर में सेल के भीतर एवं बाहर, दोनों विभागों में जल एवं अन्य solutes की मात्रा को नियंत्रित रखने में सबसे बड़ी भूमिका, हमारे द्वारा जल लेने (fluid/ water intake) एवं शरीर से जल बाहर निकालने (fluid loss) के मध्य संतुलन बनाये रखकर निभाई जाती है। क्योंकि शरीर से जल बाहर निकालने को हम अपनी इच्छा द्वारा नियंत्रित नहीं कर सकते अतः इसकी भरपाई हमें जल/ फ्लुइड की मात्रा लेने में परिवर्तन कर के पूरी करनी पड़ती है। एक बार शरीर में पहुँचने के बाद, शरीर के विभिन्न विभागों में जल एवं solutes के परस्पर आदान-प्रदान के द्वारा, homeostasis दोबारा प्राप्त कर ली जाती है।
Fluid losses
वास्तव में शरीर से प्रत्येक क्षण कहीं न कहीं से जल बाहर निकलता रहता है (water loss), चाहे वह हमें दिखाई पड़ रहा हो अथवा नहीं। सामान्य अवस्था में यह visible water loss, किडनी से यूरिन के रूप में (लगभग 1400 मिली/दिन) , आँतों से मल (stool) के रूप में (लगभग 100 मिली/दिन) एवं त्वचा से पसीने के रूप में (लगभग 100 मिली/दिन) होता है। इसके अतिरिक्त, फेफड़ों से exhaled air के साथ (लगभग 300-400 मिली/दिन) एवं त्वचा से लगातार होते रहने वाले evaporation के रूप में (लगभग 300-400 मिली/दिन) भी insensible water loss होता रहता है। इस प्रकार visible अथवा insensible losses को मिलाकर, लगभग 2200-2400 मिली फ्लुइड (जल) रोजाना शरीर से बाहर निकलता हैं। Homeostasis (steady state condition) बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि इस fluid loss को fluid intake के द्वारा पूरा कर लिया जाये। यह फ्लुइड भी अधिकांशतयः तो सीधे-सीधे जल अथवा अन्य लिक्विड्स के पीने (visible intake) से प्राप्त किया जाता है परन्तु इसकी थोड़ी मात्रा (लगभग 200 मिली) हमें भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्स के ऑक्सीडेशन (invisible intake) से भी प्राप्त होती है।
इन सामान्य अवस्थाओं के अतिरिक्त, कुछ विशेष परिस्थितियों में यह fluid losses कई गुना अधिक तक बढ़ भी सकते हैं। अत्यधिक गर्मियों में पसीने के द्वारा होने वाला water loss भी 1-2 लीटर/दिन तक पहुँच सकता है, किडनी के कुछ रोगों में urinary output 10-20 लीटर/दिन तक बढ़ सकता है जबकि diarrhea में GIT से होने वाला water loss भी अनेकों लीटर/दिन तक पहुँच सकता है। त्वचा के द्वारा होने वाला insensible loss यूं तो त्वचा की cornified layer के द्वारा नियंत्रण में रहता है परन्तु यदि burn के कारण से त्वचा की superficial layer हट जाए, तब यह भी 3-5 लीटर/दिन तक बढ़ सकता है। यदि इस excessive fluid loss को voluntary fluid intake के द्वारा पूरा न किया जाये तब इनके द्वारा उत्पन्न severe dehydration मृत्यु तक का कारण बन सकता है।
Effects of gender and age on body water
क्या शरीर में जल की कुल मात्रा (TBW) सभी व्यक्तियों में एक समान ही होता है अथवा लिंग (gender) या आयु के अनुसार इसकी मात्रा कम या अधिक होती होगी? वास्तव में, पुरुषों एवं महिलाओं की शारीरिक संरचना (body composition) में एक मूलभूत अंतर होता है। पुरुषों के शरीर में मांसपेशियों की मात्रा अधिक होती है जबकि महिलाओं में फैट (adipose tissues) की। क्योंकि शरीर की विभिन्न सेल्स में, ICF की सर्वाधिक मात्रा मांसपेशियों में ही होती है, इसीलिए, पुरुषों के शरीर में मांसपेशियों की मात्रा अधिक होने के कारण उनमें TBF भी अधिक होता है। इसके विपरीत, महिलओं के शरीर में adipose tissues की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है जिसमें ICF की मात्रा न्यूनतम होती है (क्योंकि फैट एवं जल साथ-साथ नहीं रह सकते) इसलिए महिलाओं के शरीर में TBF की मात्रा, पुरुषों की तुलना में 10% कम होती है।
आयु बढ़ने (ageing) के साथ शरीर में मांसपेशियों की मात्रा (muscle mass) घटती जाती है एवं adipose tissues की मात्रा बढ़ती जाती है। इसी कारण से वृद्ध व्यक्तियों में TBW अपेक्षाकृत कम होता है जिससे उनमें water intake के कम होने पर dehydration की सम्भावना बढ़ जाती है। इसके विपरीत, किसी नवजात शिशु (new born) में TBW की मात्रा लगभग 10-15% तक अधिक होती है जो उन्हें किसी विषम परिस्थिति में dehydration से बचाने में मदद करती है।
Movement of water across the cell membrane
किसी सॉल्यूशन (solution) के दो भाग होते हैं, solute (अधिकांशतयः सॉलिड भाग, जो घुला हो) एवं solvent (अधिकांशतयः लिक्विड भाग, जिसमें घुला हो)। अभी तक हम सेल मेम्ब्रेन से होकर किसी solutes के आवागमन के विषय में पढ़ रहे थे। यदि यही आवागमन, solute के concentration gradient के अनुसार हो तब उसे diffusion कहते हैं। परन्तु, concentration gradient के अनुसार तो solvent भी आ-जा कर सकते। किसी selectively permeable membrane (जैसे सेल मेम्ब्रेन) से, concentration gradient के अनुसार होने वाला जल (solvent) का net movement, osmosis कहलाता है। वास्तव में शरीर की प्रत्येक सेल में यह osmosis हर समय चलती रहती है परन्तु इस आवागमन के सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर होते रहने के कारण यह स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं होती। उदाहरण स्वरूप, एक सेकण्ड में किसी RBC के वॉल्यूम के 100 गुनी मात्रा के बराबर जल, सेल मेम्ब्रेन से एक ओर से दूसरी ओर आना-जाना कर लेता है। जब तक सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर होने वाला यह आवागमन बराबर होता है तब तक सेल का वॉल्यूम समान बना रहता है। परन्तु, कुछ विशेष परिस्थितियों अथवा रोग में जब इसी सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर कोई concentration difference उत्पन्न हो जाता है तब जल का यह net movement भी किसी एक पक्ष में झुक जाता है जिसके फलस्वरूप, सेल या तो फूल (swell up कर) जाती है अथवा पिचक (shrink कर) जाती है।
Diffusion across cell membrane
सेल मेम्ब्रेन से विभिन्न पदार्थों का आवागमन दो स्थानों से ही हो सकता है, i) lipid bilayer से होकर अथवा ii) protein channels से होकर। इस आवागमन में दो विधियां प्रयुक्त हो सकती हैं – i) concentration gradient के अनुसार होने वाला passive diffusion अथवा ii) concentration gradient के विपरीत दिशा में होने वाला active transport। आइये इनके विषय में अलग अलग विस्तार से समझते हैं।
प्रकृति में उपलब्ध प्रत्येक पदार्थ के पार्टिकल्स (मॉलीक्यूल्स अथवा आयन्स), सदैव हिलते-डुलते (random motion में) रहते हैं। स्वाभाविक रूप से, लिक्विड एवं गैस में इसको सरलता से देखा एवं समझा जा सकता है। जिस स्थान पर लिक्विड अथवा गैस में इन पार्टिकल्स की संख्या अधिक होती है वहां यह हिलते रहने के दौरान एक दूसरे से टकराते रहते हैं, जिससे इनका आवागमन बाधित होता रहता है। इसलिए, स्वाभाविक रूप से यह पार्टिकल्स उन क्षेत्रों की ओर बढ़ना चाहेंगें जहाँ उनकी संख्या कम हो एवं इनके मूवमेंट के समय इन पार्टिकल्स को कम रजिस्टेंस मिले। यदि इसी मूवमेंट के समय इनके सामने कोई semipermeable membrane, जैसे सेल मेम्ब्रेन, आ जाये तब यह पार्टिकल्स उस मेम्ब्रेन से टकराकर अपनी solubility के अनुसार मेम्ब्रेन के intermolecular spaces से होकर निकलने का प्रयास करते हैं। Lipid insoluble particles अपने लिए nonlipid passage जैसे प्रोटीन चैनल्स अथवा pore की तलाश करते हैं जिससे होकर वह सेल मेम्ब्रेन के पार निकल सकें। किसी semipermeable membrane अथवा channel से होकर, अपनी higher concentration से lower concentration की ओर होने वाला यह मूवमेंट, diffusion कहलाता है। स्मरण रहे, पार्टिकल्स की अपनी normal kinetic energy ही इन पार्टिकल्स को इनकी higher concentration से lower concentration की ओर लाती-ले जाती है। इस प्रकार के diffusion को, जिसमें पार्टिकल्स के मूवमेंट के लिए किसी बाहरी ऊर्जा की आवश्यकता नहीं पड़ती, simple diffusion कहते हैं। विभिन्न गैस, जैसे O2, CO2 एवं N2, का सेल मेम्ब्रेन से होकर निकलना इसी simple diffusion की प्रक्रिया द्वारा होता है।
Factors influencing simple diffusion
इस simple diffusion की गति को प्रभावित काने वाला सर्वप्रमुख कारण है, पार्टिकल्स का दो स्थानों के मध्य concentration gradient । सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर पार्टिकल्स की मात्रा में जितना अधिक अंतर होगा, simple diffusion की गति उतनी तीव्र होगी। यदि किसी सॉल्यूशन में उसके पार्टिकल्स, मॉलीक्यूल्स के रूप में न होकर आयन्स के रूप में होने पर इन आयन्स का मूवमेंट इनके concentration gradient के साथ साथ इनके ionic gradient द्वारा भी प्रभावित होता है। इस प्रकार, पॉजिटिव चार्ज युक्त मीडियम, निगेटिव चार्ज के anions को आकर्षित करते हैं जबकि निगेटिव चार्ज युक्त मीडियम, पॉजिटिव चार्ज के cations को। इसके अतिरिक्त, यदि किसी semipermeable membrane के एक ओर प्रेशर बढ़ा दिया जाये तब उसके द्वारा उत्पन्न pressure gradient भी पार्टिकल्स को हाई प्रेशर जोन से लो प्रेशर जोन की ओर ले जाने में मदद करेगा। इस प्रकार, concentration gradient, ionic gradient एवं pressure gradient तीनों, simple diffusion की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। ध्यान रहे, positive से negative gradient की ओर होने वाला यह मूवमेंट, सेल मेम्ब्रेन के किसी भी ओर से दूसरी ओर हो सकता है। इसकी निर्भरता केवल इसके gradient पर ही होती है। जब तक यह gradient बढ़ता जायेगा, इस simple diffusion की गति भी बढ़ती जाएगी। Concentration gradient के अतिरिक्त, पार्टिकल्स का आकार भी diffusion की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। जिस पार्टिकल्स का आकार एवं वजन जितना अधिक होता है, वह पार्टिकल diffusion की प्रक्रिया में उतना धीमें मूव करता है।
Endocytosis
Lipid soluble substances तो सेल मेम्ब्रेन से होकर ही गुजर जाते हैं जबकि non-lipid soluble substances के लिए pores अथवा protein channels की व्यवस्था रहती है। विभिन्न आयन्स तथा ग्लूकोज एवं एमीनो एसिड्स जैसे छोटे मॉलीक्यूल्स तो इन चैनल्स से होकर बड़ी आसानी से निकल जाते हैं परन्तु प्रोटीन जैसे बड़े मॉलीक्यूल्स का आवागमन तो इन चैनल्स के माध्यम से भी संभव नहीं हो पाता। ऐसे में इन बड़े मॉलीक्यूल्स को सेल के भीतर लेने के लिए भी एक अलग व्यवस्था होती है जिसे endocytosis (endo=अंदर, cyto=सेल, osis=प्रक्रिया) कहते हैं।
Diffusion, osmosis and osmotic pressure
किसी मेम्ब्रेन के दोनों ओर का concentration gradient ही इस बात का निर्धारण करता है कि जल का net movement किस दिशा में होगा। वास्तव में यही concentration gradient, जल के मॉलीक्यूल्स पर एक pulling force लगाता है जिसे osmotic pressure कहते हैं। यह ऑस्मॉटिक प्रेशर ही जल को किसी dilute solution (जिसमें solute तो कम होता है परन्तु जल की मात्रा अधिक होती है) से concentrated solution (जिसमें solute अधिक होता है परन्तु जल की मात्रा कम होती है) की ओर खींचता है। जरा सोचो, यदि ऐसे में concentrated solution की ओर कोई बाहरी प्रेशर लगाया जाये तब उसका परिणाम क्या होगा? वास्तव में यह इस जल के आवागमन का विरोध करेगा, यहाँ तक कि उस बाहरी प्रेशर को बढ़ाते जाने पर एक सीमा के बाद यह जल के आवागमन को पूर्णतयः रोक भी देगा। स्वाभाविक रूप से, concentrated solution पर लगाए जा रहे जिस बाहरी प्रेशर पर जल का यह osmotic movement पूर्णरूप से रुक जाये, वही उस सॉल्यूशन का ऑस्मॉटिक प्रेशर होगा। इस प्रकार, यदि किसी U के आकार की ट्यूब के बीच में एक semipermeable membrane लगा कर एक ओर सॉल्ट सॉल्यूशन भर दिया जाये एवं दूसरी ओर प्लेन वाटर, तब यह प्लेन वाटर, सॉल्ट सॉल्यूशन की ओर इस semipermeable membrane से होकर जाने लगेगा जिससे सॉल्ट सॉल्यूशन का स्तर ऊपर उठता जायेगा जबकि प्लेन वाटर का स्तर नीचे गिरता जायेगा। यह आवागमन कुछ समय तक चलने के बाद स्वयं ही रुक जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सॉल्ट सॉल्यूशन का बढ़ता स्तर, अपने hydrostatic pressure के कारण अब इस जल के आवागमन का विरोध करेगा। ऐसे में सॉल्ट सॉल्यूशन का स्तर, प्लेन वाटर के स्तर से जितना ऊपर होगा, उतना hydroststic pressure ही उस सॉल्यूशन के ऑस्मॉटिक प्रेशर के बराबर होगा।
Moles and molar concentration
Diffusion के समय diffuse होने वाले पार्टिकल्स की अपनी kinetic energy ही सेल मेम्ब्रेन से होकर उनके आवागमन के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि किसी सॉल्यूशन द्वारा उत्पन्न ऑस्मॉटिक प्रेशर उस सॉल्यूशन के unit volume में उपस्थित पार्टिकल्स की कुल संख्या पर निर्भर करता है, उन पार्टिकल्स के आकार पर नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि बड़े पार्टिकल्स धीमें चलते हैं जबकि छोटे पार्टिकल्स तेज। इस प्रकार से दोनों प्रकार के पार्टिकल्स की average kinetic energy (k = 1/2 mv2) समान ही होती है जिसके कारण से उनके द्वारा उत्पन्न ऑस्मॉटिक प्रेशर भी लगभग समान ही होता है। इस प्रकार, यदि किसी सॉल्यूशन में 100 मिली जल में 10 ग्राम ग्लूकोज घोला जाये एवं दूसरे सॉल्यूशन में 100 मिली जल में 10 ग्राम सॉल्ट घोला जाये तब इन दोनों सॉल्यूशन्स में, सॉल्ट सॉल्यूशन द्वारा ग्लूकोज सॉल्यूशन की अपेक्षाकृत अधिक ऑस्मॉटिक प्रेशर उत्पन्न किया जायेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ग्लूकोज मॉलीक्यूल्स का वजन अधिक होने के कारण इसके 10 ग्राम में ग्लूकोज मॉलीक्यूल्स की कुल संख्या अधिक होगी जबकि 10 ग्राम सॉल्ट में NaCl मॉलीक्यूल्स के छोटे होने के कारण NaCl मॉलीक्यूल्स की कुल संख्या कम होगी। क्योंकि किसी मॉलीक्यूल के 1 ग्राम में उपस्थित उनके मॉलीक्यूल्स की संख्या को उस मॉलीक्यूल की 'molar concentration' कहा जाता है अतः इसी तथ्य को हम यह भी कह सकते हैं कि, किसी सॉल्यूशन द्वारा उत्पन्न ऑस्मॉटिक प्रेशर उस सॉल्यूशन में उपस्थित मॉलीक्यूल्स की molar concentration के बराबर होता है।
Osmoles
यहाँ ग्लूकोज एवं सॉल्ट सॉल्यूशन्स के ऑस्मॉटिक प्रेशर के बीच एक अंतर और भी होता है। ग्लूकोज का मॉलीक्यूल, जल में विखण्डित नहीं होता (dissociate नहीं करता) जबकि NaCl का मॉलीक्यूल, Na+ एवं Cl- में विखण्डित हो जाता है। इस प्रकार,10 ग्राम NaCl के सॉल्यूशन में न केवल मॉलीक्यूल्स की संख्या 10 ग्राम ग्लूकोज की अपेक्षा अधिक होगी बल्कि इन मॉलीक्यूल्स के आयन्स के रूप में विखण्डित हो जाने के कारण पार्टिकल्स (यहाँ आयन्स) की कुल संख्या और भी अधिक (दोगुनी) हो जाएगी। अतः, किसी सॉल्यूशन द्वारा उत्पन्न ऑस्मॉटिक प्रेशर, उस सॉल्यूशन के unit volume में उपस्थित 'osmotically active' particles की संख्या के बराबर होता है जिसे 'osmole' कहते हैं। अतः, किसी osmotically active solute के 1 gram molecular weight (अथवा ionic weight) को उस solute का 1 osmole कहते हैं।
Osmolality of a body fluid
शरीर में यह सभी solutes, विभिन्न शारीरिक फ्लुइड्स में सॉल्यूशन के रूप में रहते हैं। इसलिए हमें उस parameter की आवश्यकता होगी जो उस सॉल्यूशन की कुल osmotic activity के विषय में जानकारी दे सके। किसी सॉल्यूशन की osmotic activity निर्भर करती है उसमें उपस्थित osmotically active solutes की कुल संख्या (osmoles) पर जिसे हम 1 kilogram of water के सन्दर्भ में नापते हैं। इस प्रकार, यदि, 1 kilogram water में solutes की कुल संख्या 1 osmole हो तब उस सॉल्यूशन की 'osmolality' को 1 osmole per kilogram of water या 1 osm/kg कहेंगें। क्योंकि शारीरिक फ्लुइड्स में यह solutes काफी कम मात्रा में घुले होते हैं अतः इनके सन्दर्भ में इसी osmolality को एक छोटी यूनिट, miliosmole per kilogram of water या mosm/kg के रूप में लिखते हैं। शरीर के ECFs एवं ICFs की osmolality लगभग 300 mosm/kg होती है।
यहाँ एक विचार यह भी उठ सकता है कि जब हम किसी फ्लुइड को उसके वॉल्यूम में नापते हैं, न कि उसके वजन में, तब उसकी osmolality को भी हमें उसके वॉल्यूम में नापना चाहिए। वास्तव में इसके लिए हम osmolality (number of osmoles per kilogram of solution) के स्थान पर osmolarity (number of osmoles per liter of solution) का उपयोग करते हैं। विभिन्न शारीरिक फ्लुइड्स में, जहाँ solutes की मात्रा काफी थोड़ी ही होती है, इन दोनों parameters में कोई विशेष अंतर नहीं होता (<1%)।
सामान्य शारीरिक तापमान पर 1 osm/l concentration के सॉल्यूशन से लगभग 19,300 mmHg ऑस्मॉटिक प्रेशर उत्पन्न होता है। इस प्रकार गणना करने पर, 300 mosm/l osmolarity वाले शारीरिक फ्लुइड्स का ऑस्मॉटिक प्रेशर लगभग 5790 mmHg होना चाहिए। परन्तु जब हम उसी शारीरिक फ्लुइड का ऑस्मॉटिक प्रेशर की गणना वास्तव में करते हैं तब यह उससे भिन्न, 5500 mmHg ही आता है। ऐसा किस कारण से होता होगा? इसका अर्थ तो यह हुआ कि शारीरिक फ्लुइड्स में उपस्थित होने के बावजूद कुछ solutes अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पा रहे होंगें। वास्तव में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन शारीरिक फ्लुइड्स में उपस्थित अनेकों आयन्स, एक दूसरे को आकर्षित करके उनके आवागमन को बाधित करते हैं जिससे वह अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाते। इसी कारण से शारीरिक फ्लुइड्स का वास्तविक ऑस्मॉटिक प्रेशर, उनकी गणना से निकाले गए calculated osmotic pressure से लगभग 7% कम (अथवा उसका 93%) होता है।
Mesurement of plasma osmolality
किसी फ्लुइड में उपस्थित solutes ही उस फ्लुइड में ऑस्मॉटिक प्रेशर उत्न्न करते हैं। अतः, प्लाज्मा की osmolality की गणना करने के लिए प्लाज्मा में उपस्थित solutes की मात्रा को नापना होगा। यूं तो प्लाज्मा में अनेक प्रकार के solutes उपस्थित होते हैं परन्तु अधिकाँश solutes की plasma concentration इतनी थोड़ी होती है कि प्लाज्मा की total osmolality में उन सबका कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ पाता। Plasma osmolality के सन्दर्भ में केवल Na+, K+, urea एवं glucose ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यही solutes अपनी मात्रा के कारण plasma osmolality को प्रभावित कर पाते हैं।
यदि इन सभी solutes की गणना mmol/L में की जाये तब plasma osmolality को इस प्रकार लिखा जा सका है -
Plasma osmolality = 2 (Na+) + 2 (K+) + urea in mmol/L + glucose in mmol/L
ध्यान दें, यहाँ Na+ एवं K+ को 2 से गुणा किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि विभिन्न फ्लुइड्स में चाहे कोई भी anion एवं कोई भी cation क्यों न मिल रहे हों, उनमें anions की कुल मात्रा तो cations के बराबर ही होती हैं जिससे इनके पॉजिटिव एवं निगेटिव चार्ज एक दूसरे को न्यूट्रलाइज करके फ्लुइड को ionic equilibrium में रखा जा सके। इन्हीं anions को उपरोक्त equation में सम्मिलित करने के लिए anions (Na+ एवं K+) की कुल मात्रा को 2 से गुणा किया गया है।
परन्तु हमारी भारतीय प्रणाली में glucose एवं urea को mmol/L से अधिक mg/dl में नापा जाता है। इसीलिए इनकी मात्रा से osmolality की गणना करने के लिए आवश्यक होगा कि पहले इन दोनों की mg/dl में नापी गयी मात्रा को इनके molecular weight से भाग दिया जाये जिससे इनकी molar concentration निकाली जा सके। इनके विपरीत, Na+ एवं K+ को meq/L में नापा जाता है जिसकी मात्रा mmol/L के ही समान होती है। इसके अनुसार यह फॉर्मूला इस प्रकार लिखा जा सकता है -
Plasma osmolality = 2 (Na+) + 2 (K+) + urea/ in mg/dl40 + glucose in mg/dl/18
Mesurement of osmolality of ISF and ICF
ISF एवं ICF एक दूसरे से सेल मेम्ब्रेन के द्वारा अलग-अलग रहते हैं। जल तो इस सेल मेम्ब्रेन से होकर आसानी से गुजर जाता है परन्तु इलेक्ट्रोलाइट्स का आवागमन सेल की आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित होता है। अतः, यदि किसी समय इनमें से एक विभाग में इलेक्ट्रोलाइट्स की मात्रा बढ़ती है तब उन solutes (इलेक्ट्रोलाइट्स) से उत्पन्न ऑस्मॉटिक प्रेशर के कारण तुरंत ही जल उस विभाग की ओर खिंचने लगता है। ऑस्मॉसिस के द्वारा होने वाला यह जल का मुक्त आवागमन पुनः इन दोनों विभागों में osmotic equilibrium स्थापित कर लेता है। इस प्रकार जल के उपलब्ध रहने पर, शरीर के विभिन्न विभागों के मध्य जल के मुक्त रूप से आवागमन होते रहने से ISF एवं ICF की osmolality लगभग समान ही बनी रहती है। अतः, यदि प्लाज्मा की osmolality को नाप लिया जाये तब उसके द्वारा ISF एवं ICF की osmolality का अनुमान स्वतः ही लगाया जा सकता है।
Movement of ions across cell membrane
Ion channels
क्योंकि cations (मुख्यतः Na+, K+ एवं Ca++) एवं anions (मुख्यतः Cl-) किसी सेल की bilayered lipid membrane से होकर नही गुजर सकते, अतः इनके आवागमन के लिये ion channels की व्यवस्था होती हैं। सामान्यतः सेल को polarized अवस्था में ही बनाये रखने के लिये यह चैनल्स बन्द रहती हैं, परन्तु किसी एक्टिविटी के समय यह चैनल्स खुल जाती हैं, जिससे आयन्स का passive movement उस सेल में वह एक्टिविटी सम्पन्न करा सके।
यह आयन चैनल्स अपने-अपने आयन (anion अथवा cation) के लिये विशिष्ट (specific) होती हैं। चैनल की भीतरी सतह पर पॉजिटिव चार्ज होने पर वह पॉजिटिव चार्ज युक्त cations को दूर ढकेलता है एवं अपने से होकर नहीं गुजरने देता है। इन चैनल से होकर केवल anions ही गुजर सकते हैं, अर्थात् वह चैनल, cations specific होते हैं। इसके विपरीत यदि चैनल की भीतरी सतह पर निगेटिव चार्ज होने पर वह चैनल, cations specific हो जाता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी cation channel से सभी cations (Na, K+, Ca++ आदि) गुजर सकेंगे? वास्तव में नहीं। यह cation channels भी अपने-अपने cation के लिये विशिष्ट होते हैं। ऐसा मुख्यतः इन चैनल्स के pore के डायामीटर के कारण होता है। जैसे-जैसे किसी ऐटम (अथवा उसके आयन) का atomic number अथवा atomic weight बढ़ता जाता है, उसका आकार भी बढ़ता जाता है। इसीलिये यदि किसी चैनल का डायामीटर कम है तब वह केवल छोटे आयन्स को ही गुजरने देता है, अपने से बड़े डायामीटर वाले आयन्स को नहीं। इस प्रकार छोटे cations (जैसे Na+) केवल अपने ही Na+ चैनल्स द्वारा गुजर सकते हैं। अर्थात् Na+ चैनल्स केवल और केवल Na+ ions के लिये ही specific होते हैं।
छोटे डायामीटर वाले चैनल्स बड़े आयन्स को निकलने न दें, यह बात तो समझ में आती है, परन्तु Na+ जैसे छोटे आयन्स, K+ चैनल्स जैसे बड़े डायामीटर के चैनल्स से क्यों नही निकल सकते? ऐसा इसलिए क्योंकि K+ चैनल्स के pore में कुछ selectivity filters लगे होते हैं जो उससे होकर केवल K+ को ही निकलने देते हैं। किसी बैक्टीरिया की K+ चैनल्स, वास्तव में 4 subunits की बनी tetrameric channel होती हैं, जिनके मध्य में एक central pore होता है। इसी pore के बाहरी छोर पर एक pore loop में यह selectivity filter लगे होते हैं जो K+ चैनल्स में carbonyl oxygen के बने होते हैं। अब जैसे ही K+ इन pore loops के संपर्क में आता है, यह carbonyl oxygen उसके hydrated ion का water खींच लेते हैं। इस प्रकार K+ आकार में छोटा होकर, आसानी से K+ चैनल से निकल जाता है। अब प्रश्न यह उठता है कि यही carbonyl oxygen, hydrated Na+ का water क्यों नहीं खींच पाते? वास्तव में, hydrated Na+, hydrated K+ से छोटा होता है, जिससे वह selectivity filter के चारों carbonyl oxygens के संपर्क में नहीं आ पाता, जो उसे dehydrate कर पाते। Na+ चैनल में Na+ के dehydration के लिए दूसरी विधि का प्रयोग होता है। Na+ चैनल्स का strong internal negative charge ही Na+ को उससे जुड़े water molecule से अलग कर देता है।
Different mechanisms of transport of ions across cell membrane
ICF एवं ECF में उनकी परस्पर आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न प्रकार के आयन्स की मात्रा में कुछ कुछ भिन्नता होती है। ICF में K+, Mg++ एवं PO4 की मात्रा ECF से अधिक होती है एवं ECF में Na+, Ca++ एवं CI– की मात्रा ICF से अधिक होती है। यदि इनकी इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी के अनुसार देखें तो इन सब में Na+ एवं K+ सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। ECF में Na+, ICF में Na+ की अपेक्षा 14 गुना अधिक मात्रा में मिलता है। (142 vs 10 mg/l)। इसके विपरीत ICF में K+, ECF में K+ की अपेक्षा 35 गुना अधिक मात्रा में होता है (140 vs 4 mg/l)। Na+ एवं K+ के स्तरों की यह भिन्नता ही सेल्स की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटीज को संचालित कराती है।
सभी ion channels एवं उनसे होने वाले ionic movements, एक प्रकार के ही नहीं होते। Ion specific होने के साथ साथ यह ion channels, transport specific भी होते हैं। मुख्य रूप से यह दो प्रकार के हो सकते हैं।
i) Diffusion channels - जिनके द्वारा आयन्स अपने concentration gradient के अनुसार बिना ऊर्जा का उपयोग किये गुजरते हैं (passive diffusion)। यह भी दो प्रकार के हो सकते हैं। a) Simple diffusion channels - जिनमें कोई गेट नहीं होते एवं जिनसे आयन्स का मूवमेंट लगातार हो सकता है, एवं b) Gated diffusion channels - जो गेट के द्वारा आवश्यकतानुसार खोले अथवा बंद किये जा सकते हैं जिनसे आयन्स का मूवमेंट आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
ii) Active pump – इनके द्वारा आयन्स अपने concentration gradient के विपरीत, lower ionic concentration से higher ionic concentration की ओर, ऊर्जा का उपयोग करते हुए पंप किये जाते हैं। Ion pumps से होने वाला active transport भी दो प्रकार का हो सकता है। a) Primary active transport - जिसमें छोटे आयन्स सीधे सीधे सेल मेम्ब्रेन के एक ओर से दूसरी ओर पंप कर दिए जाते हैं, एवं b) Secondary active transport - जिसमें किसी आयन के active transport द्वारा एक ionic gradient निर्मित कर दिया जाता है जिसके पश्चात् higher gradient से lower gradient की ओर लौटते हुए यह आयन अपने साथ किसी अन्य आयन को भी साथ खींच लाता है। प्रथम आयन के active transport के द्वारा, दूसरे आयन का होने वाला यह passive transport, co-transport या secondary active transport कहलाता है।
Diffusion channels
Na+ की मात्रा cell के बाहर, व K+ की मात्रा सेल के भीतर अधिक होती है। यदि इन Na+ एवं K+ को अपने-अपने चैनल्स खुले मिल जायें, तब यह दोनों simple diffusion के द्वारा अपने-अपने higher concentration से lower concentration की ओर चलते हुए, सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर बराबरी के स्तर पर पहुँच जायेंगे। ये चैनल्स, diffusion ion channels कहलाती हैं Na+ एवं K+ आयन्स के इस concentration gradient को बनाये रखने के लिये आवश्यक है कि ये चैनल्स हमेशा खुले हुए न रहकर किसी द्वार (gate) के द्वारा बन्द रहें एवं उस गेट को केवल आवश्यकतानुसार ही खोला अथवा बन्द किया जाये।
Voltage gated and ligand gated channels
जरा सोचें, कोई गेट किस किस प्रकार से खुल अथवा बंद हो सकता है? या तो वह किसी विशेष परिस्थिति में अपने आप (automatically) ही खुल जाएं या बंद हो जायें अथवा उसे किसी बाहरी प्रक्रिया (चाबी) से खोला या बंद किया जाए। यह ion channels भी इसी आधार पर दो प्रकार से कार्य कर सकती हैं। i) voltage gated channels - जिनमें सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर कोई विशेष voltage उत्पन्न होते ही इन चैनल्स के मुहाने पर लगे gate (flaps या valves) खुल या बंद हो जाते हैं, एवं ii) chemical या ligand gated channels - जो इन चैनल्स के मुहाने पर किसी विशेष पदार्थ (जिसे उस चैनल का ligand कहते हैं) के लगने पर खुलती या बंद होती हैं। किसी excitable tissue के excitation में प्रयुक्त होने वाली अधिकांश चैनल्स voltage gated होती हैं जबकि synapse एवं neuromuscular junction में ligand (acetylcholine) gated।
Leak channels
इनके अतिरिक्त कुछ ions channels ऐसे भी होते हैं, जिनके द्वारा इन आयन्स का अवागमन बिना किसी रुकावट के भी (un-gated) along their concentration gradient होता है। क्योंकि इन चैनल्स द्वारा होने वाला आवागमन, एक सीमा तक ionic concentration gradient बनाये रखने के सिद्धान्त के विरुद्ध है, इसीलिये इस आवागमन को Na+ leak अथवा K+ leak कहते हैं एवं यह channels, leak channels कहलाती हैं। ये leak channels Na+ की अपेक्षा K+ के लिये 100 गुना अधिक permeable होती है। इसीलिये सामान्यतः इनको K+ leak channels के नाम से ही सम्बोधित किया जाता है।
Active ion pumps
आयन चैनल्स के आवश्यकतानुसार खोलने अथवा बन्द होने पर भी, कुछ समय बाद तो आयन्स का स्तर, सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर बराबर हो ही सकता है। ऐसे में तो शरीर की समस्त गतिविधियां ही रुक सकती हैं। अतः आयन्स के concentration gradient को बार-बार बनाये रखने के लिये कुछ आयन्स को उनके concentration gradient के विरुद्ध बलपूर्वक lower concentration से higher concentration की ओर भेजना पड़ता है। इसके लिए, कुछ चैनल्स, gradient के विपरीत दिशा में होने वाले active transport में भाग लेते हैं, जिन्हें active pump कहते हैं। इन active ion pumps में ऊर्जा का उपयोग करते हुए भी आयन्स को concentration gradient के विरुद्ध पंप कर के, सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर इनकी वांछित मात्रा बनायी रखी जाती है। Ion pumps से होने वाला active transport भी दो प्रकार का हो सकता है। a) Primary active transport - जिसमें छोटे आयन्स सीधे सीधे सेल मेम्ब्रेन के एक ओर से दूसरी ओर पंप कर दिए जाते हैं। Na+, K+, H+, Ca++ एवं Cl- इत्यादि आयन्स इसी प्रकार से पंप किये जाते हैं। Na-K ATPase pump भी इसी प्रकार का primary active pump है जिसके विषय में हम आगे विस्तार से पढ़ेंगें। b) Secondary active transport - कभी कभी किसी आयन के active transport द्वारा एक ionic gradient निर्मित कर दिया जाता है जिसके पश्चात् higher gradient से lower gradient की ओर लौटते हुए यह आयन अपने साथ किसी अन्य आयन को भी साथ खींच लाता है। प्रथम आयन के active transport के द्वारा, दूसरे आयन का होने वाला यह passive transport, co-transport कहलाता है जो एक प्रकार का secondary active transport ही है। Cl- एवं l- इत्यादि आयन्स का co-transport इसी प्रकार किया जाता है जिसके लिए अधिकांशतयः Na+ की सहायता ली जाती है। Thyroid follicular cells की basolateral membrane पर Na+एवं l- का यह co-transport, Na-I symporter भी कहलाता है।
Facilitated diffusion
सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर concentration gradient होने के बाद भी कुछ मॉलीक्यूल्स (जैसे ग्लूकोज एवं एमिनो एसिड्स), आकार में बड़े होने के कारण सेल मेम्ब्रेन से होकर नहीं गुजर पाते। इन्हें किसी सहारे (facilitation अथवा carrier) की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार के diffusion को facilitated diffusion अथवा carrier mediated diffusion कहते हैं। स्वाभाविक रूप से यह carrier mediated diffusion, उस मीडियम में carrier molecules की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। यदि यह carrier molecules प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होंगें, तब यह diffusion बढ़ता जायेगा परंतु जब सभी carrier molecules इस प्रक्रिया में प्रयुक्त हो चुके होंगें, तब इस carrier mediated diffusion की गति को और अधिक बढ़ा पाना संभव नहीं हो सकेगा। इस प्रकार, Simple diffusion में तो diffusion की गति बिना किसी ऊपरी सीमा के, gradient के अनुसार एक सीधी रेखा में (linearly) बढ़ती जाती है परंतु carrier mediated diffusion में, आरंभ में तो यह gradient के अनुसार सीधी रेखा में बढ़ती है परंतु जैसे ही सभी carrier proteins इस कार्य में प्रयुक्त हो जाते हैं, इस प्रक्रिया में ठहराव (plateau) आ जाता है। इस स्थिति में पहुँचने के उपरांत, concentration gradient के बढ़ने के बाद भी, diffusion की गति को बढ़ा पाना संभव नहीं होता।
Active transport
अपने नाम के अनुरूप active transport की क्रिया gradient के विपरीत दिशा में (lower से higher concentration की ओर) होती है जिसको पार्टिकल्स की अपनी kinetic energy के द्वारा करा पाना संभव नहीं होगा। इसके लिए सेल को अतिरिक्त ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है जो उसे ATP अथवा अन्य phosphate bonds के द्वारा प्राप्त होती है। जिस प्रकार diffusion में छोटे पार्टिकल्स तो स्वतः ही मूव कर जाते हैं परंतु बड़े पार्टिकल्स को लाने ले जाने के लिए carrier की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार active transport में भी छोटे पार्टिकल्स (जैसे आयन्स) को तो सीधे सीधे active transport द्वारा पंप कर दिये जाते हैं परंतु बड़े पार्टिकल्स के लिए अन्य पदार्थों की मदद लेनी पड़ती है। आश्चर्यजनक रूप से यह कार्य भी छोटे पार्टिकल्स (जैसे आयन्स) द्वारा किया जाता है। इसके लिए, ऊर्जा के प्रयोग द्वारा पहले तो आयन्स को एक दिशा में पंप कर दिया जाता है जिससे उनका एक ionic gradient स्थापित हो जाता है। अब यह gradient उस आयन को उसकी lower concentration वाली विपरीत दिशा में खींचने लगता है। वापस आते समय यह आयन उन बड़े पार्टिकल्स को अपने साथ बाँध लेते हैं तथा उनको भी अपने साथ खींच लाते हैं। यहाँ छोटे आयन्स का सीधे सीधे होने वाला यह active transport, primary active transport कहलाता है जबकि आयन्स के active transport द्वारा निर्मित ionic gradient से छोटे आयन्स के साथ जुड़े (coupled) बड़े पार्टिकल्स का मूवमेंट, secondary active transport कहलाता है।
अधिकांशतयः carrier molecule एवं बड़े पार्टिकल्स का यह मूवमेंट, सेल मेम्ब्रेन से होकर एक ही दिशा में होता है। इसे co-transport कहते हैं। कभी कभी, ऐसा भी होता है कि एक दिशा में चलता हुआ carrier molecule कुछ ऐसी व्यवस्था करे जिससे बड़े पार्टिकल्स उसके विपरीत दिशा में जाने लगें। वह active transport जिसमें carrier molecule एवं बड़े पार्टिकल्स का मूवमेंट, सेल मेम्ब्रेन से होकर विपरीत दिशा में होता है, उसे counter-transport कहते हैं।
Na-K ATPase pump
Structure - Na K pump एक heterodimer है जिसमें एक बड़ी 𝛂 सुबयूनिट एवं एक छोटी β सबयूनिट होती है। इनमें से पंप के सभी कार्य 𝛂 सबयूनिट द्वारा ही संपन्न होते हैं। किसी भी अन्य चैनल की भांति Na-K ATPase pump भी membrane spanning proteins के बने होते हैं जिसका एक भाग सेल के बाहर (extracellular – EC) जबकि दूसरा सेल के भीतर (intracellular – IC) होता है। क्योंकि, इस पंप का कार्य सेल के भीतर स्थित Na+ को सेल के बाहर निकालना है अतः इसकी Na+ binding site सेल के भीतर (IC) स्थित होती है। इसी प्रकार, सेल के बाहर स्थित K+ को सेल के भीतर लाने के लिए इसकी K+ binding site, सेल के बाहर (EC) स्थित होती है। यह पंप 3 Na+ को सेल के बाहर निकालता है जबकि 2 K+ को सेल के भीतर लेता है, इसीलिए इसके भीतरी भाग पर 3 Na+ IC binding sites एवं बाहरी भाग पर 2 K+ EC binding sites होती हैं। यह एक active pump है जो Na+ एवं K+ को उनकी concentration gradient के विरुद्ध पंप करता है। अतः इस प्रक्रिया में ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जो स्वाभाविक रूप से इसे ATP के माध्यम से मिलेगी। स्वाभाविक है कि यह ATP इसी सेल को ही उपलब्ध कराने पड़ेंगे। इसीलिए, Na K pump का भीतरी IC भाग, Na K ATPase enzyme से भी जुड़ा होता है जो ATP को ADP में तोड़कर पंप के लिए आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध कराता है।
Functioning - जैसे ही 3 Na+ अपने IC binding part पर एवं 2 K+ अपने EC binding part पर जुड़ते हैं, IC domain पर लगा Na K ATPase एन्जाइम सक्रिय हो जाता है तथा ATP को ADP में तोड़कर ऊर्जा उत्पन्न करता है। इस ऊर्जा से पंप में कुछ संरचनात्मक परिवर्तन (conformational changes) उत्पन्न होते हैं जो 3 IC cations (Na+) को बाहर ढकेलकर 2 EC cations (K+) को सेल के भीतर ले लेते हैं। इस प्रकार 3 cations का निकलना, 2 cations के भीतर आने से जुड़ा (coupled) है, जिसको Na K pump का coupling ratio कहते हैं।
इस प्रकार कार्य करता हुआ यह पंप, सेल के बाहर पॉजिटिव चार्ज में वृद्धि करता जाता है। इसको यूं भी कह सकते हैं कि Na K pump, EC electropositivity को तथा IC electronegativity को बढ़ाता है। इस प्रकार यह पंप, सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर एक electrical potential उत्पन्न कर देता है जिसके कारण इसे electrogenic pump भी कहते हैं। यहाँ यह तथ्य ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है कि पॉजिटिव एवं निगेटिव चार्ज केवल सेल मेम्ब्रेन के समीप में ही घटते और बढ़ते हैं, पूरी सेल अथवा पूरे ECF में नहीं। वास्तव में किसी सेल में उपस्थित सभी निगेटिव एवं पॉजिटिव चार्ज का योग सदैव समान ही रहता है।
Significance - Na K pump द्वारा मुख्यतः 3 अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यो का संपादन होता है।
i) यह किसी सेल के वॉल्यूम को नियंत्रित करते हैं। वास्तव में, प्रत्येक सेल में कुछ निगेटिव चार्ज युक्त प्रोटीन्स होते हैं जो स्वाभाविक रूप से पॉजिटिव चार्ज युक्त cations को आकर्षित करते हैं। ऐसे में सेल में cations की मात्रा बढ़ती जाती है जो osmosis द्वारा जल को सेल के भीतर खींचती है। लगातार चलने वाली इस osmosis से सेल फट तक सकती है।
ii) Na K pump का electrogenic character, सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर electrical gradient या membrane potential उत्पन्न करता है। Excitable tissues जैसे मांसपेशियों एवं न्यूरॉन्स में यह electrical gradient या membrane potential ही सेल की excitability बढ़ाने में मदद करता है।
iii) Na K pump के द्वारा ECF में Na+ एवं ICF में K+ की मात्रा बढ़ती जाती है। अर्थात, इससे electrical gradient के साथ-साथ एक chemical concentration gradient भी उत्पन्न कर दिया जाता है। इसके कारण, यह आयन्स सदा इस प्रयास में रहते हैं कि जैसे ही अवसर मिले (इनको अपने चैनल्स खुले मिलें) वह अपने concentration gradient के अनुसार मूव करने लगें। इस प्रकार पंप की kinetic energy, potential energy के रूप में संग्रहित कर दी जाती है। Na+ का सेल के भीतर आने का यह प्रयास ही सेल के लिए आवश्यक अनेकों अन्य पदार्थों को अंदर लाने का एक माध्यम बन जाता है।
Regulation
Endogenous regulation - प्रत्येक सेल एक सीमा तक तो अपनी आवश्यकतानुसार स्वयं इस पंप की एक्टिविटी को घटा अथवा बढ़ा सकती है। जैसे ही ICF में Na+ की मात्रा बढ़ाने लगती है, पंप की एक्टिविटी बढ़ा कर सेल इस Na+ की अतिरिक्त मात्रा को बाहर निकाल देती है।
Exogenous regulation - कुछ बाहरी हॉर्मोन्स भी इस पंप की एक्टिविटी को अथवा इनकी संख्या को घटा अथवा बढ़ा सकते हैं। थायरॉयड हॉर्मोन्स एवं aldosterone इस पंप के निर्माण को बढ़ाते हैं जबकि इन्सुलिन इसकी एक्टिविटी को। Dopamine, digitalis glycosides एवं ouabain इसकी एक्टिविटी को घटाते हैं।
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