Electrical activities in an excitable cell

Electrical activities in an excitable cell
Functional structure of the cell membrane
प्रत्येक सेल मेम्ब्रेन वास्तव में एक lipid bilayer है, जिसमें बीच-बीच में बड़े-बड़े integral protein मॉलीक्यूल्स लगे रहते है। सेल मेम्ब्रेन की संरचना को fluid mosaic model कहा जाता है, जो वास्तव में एक viscous fluid की तरह ही आचरण करता है एवं विभिन्न पदार्थों को सहजता से अपने दोनों ओर आने-जाने देता है। इस आवागमन की शर्त बस यही है कि वह पदार्थ lipid soluble होना चाहिये। कल्पना करें, एक बीकर में जल के ऊपर गाढ़े तेल की एक मोटी परत रखी है। यह परत एक barrier का कार्य तो करती है परन्तु कोई वजन इसको पार करके नीचे जल में जा भी सकता है एवं दोबारा ऊपर खींचा भी जा सकता है। इसी प्रकार का आवागमन सेल मेम्ब्रेन की lipid bilayer से होकर भी हो सकता है। जिस प्रकार तेल की यह परत वजन के निकल जाने के उपरान्त पुनः पहले की ही भांति एकसार हो जाती है उसी प्रकार किसी लिपिड में घुलनशील पदार्थ के निकल जाने के बाद सेल मेम्ब्रेन भी दोबारा पूर्ववत् barrier बना लेती है।
Lipid bilayer दो प्रमुख प्रकार के लिपिड मॉलीक्यूल्स से बनी होती है, phospholipids एवं cholesterol । इनमें से phospholipids पुनः phosphate एवं fatty acid से मिलकर बने होते हैं। हम जानते हैं कि फैटी एसिड्स पानी में नही घुलते (water insoluble) तथा वह पानी से दूर रहना चाहते हैं (अर्थात hydrophobic होते हैं) परन्तु लिपिड में घुलनशील (lipid soluble) तथा लिपिड के पास रहना पसंद करते हैं (अर्थात lipophilic होते हैं)। इसके विपरीत phosphates पानी में घुलनशील (water soluble) होते हैं (अर्थात hydrophilic एवं lipophobic होते हैं)। क्योंकि ICF एवं EFC दोनों मुख्यतः water based हैं, अतः phosphate moiety तो इसके संपर्क में रह लेती है परन्तु fatty acid moiety के लिए यह संभव नहीं। इसीलिये phopholipids मिलकर एक bilayer बनाते हैं जिसमें दोनो सतहों पर hydrophillic phosphate moiety एवं बीच में hydrophobic fatty acid moiety रहती है। सेल मेम्ब्रेन का दूसरा प्रमुख घटक cholesterol इसी bilayer में घुला मिला रहता है। सेल मेम्ब्रेन में एक अन्य प्रकार का लिपिड भी मिलता है, जो sphingosine नामक aminoalcohol से बना होने के कारण sphingo lipid कहलाता है। यह मुख्यतः न्यूरॉन्स में मिलता है तथा signal transmission में भी सहायक होता है।
Transport across cell membrane
लिपिड में घुलनशील पदार्थ सेल मेम्ब्रेन की lipid bilayer से होकर इतनी सहजता से गुजर जाते हैं जैसे कि मानों मेम्ब्रेन का कोई अस्तित्व ही न हो। परन्तु जल में घुलनशील पदार्थ इससे होकर नहीं निकल पाते। इन्हीं पदार्थों के लिये lipid bilayer के मध्य अनेकों integral proteins के globular molecules होते हैं, जिनके दोनों छोर सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर निकले रहते हैं। इस प्रकार यह मॉलीक्यूल्स ECF एवं ICF, दोनों के सम्पर्क में रहते हैं।
इनमें से कुछ प्रोटीन मॉलीक्यूल्स इन जल में घुलनशील पदार्थों के आवागमन के लिये विशिष्ट मार्ग, channel, भी बनाते हैं। जिस प्रकार कई महत्वपूर्ण स्थलों पर rights of admission reserved रहता है उसी प्रकार यह चैनल्स भी अपने से होकर कुछ विशिष्ट पदार्थों को ही गुजरने देते हैं। इसे यूं भी कह सकते हैं कि विभिन्न पदार्थों के लिये सेल मेम्ब्रेन में भिन्न-भिन्न चैनल्स होते हैं। किसी चैनल के pore का अंदरूनी डायामीटर, उसका आकार एवं इसके अन्दर उपस्थित इलेक्ट्रिक चार्ज इस बात का निर्धारण करते हैं कि चैनल से गुजरने वाला पदार्थ किस प्रकार का होगा।
Ion channels
सभी आयन्स (anions अथवा cations), जल में घुलनशील होने के कारण lipid bilayer से न जाकर, आवागमन के लिये अपने विशिष्ट आयन चैनल्स पर निर्भर होते हैं। यदि चैनल की भीतरी सतह पर पॉजिटिव चार्ज है तब वह चैनल पॉजिटिव चार्ज युक्त cation को दूर ढकेलेगा एवं अपने से होकर नही गुजरने देगा। इन चैनल्स से होकर केवल anions ही गुजर सकेंगे। इसके विपरीत यदि चैनल की भीतरी सतह पर निगेटिव चार्ज हो तब उस चैनल से cations ही गुजर सकेंगें।
क्या किसी cation channel से सभी cations (Na, K+ , Ca++ इत्यादि) गुजर सकेंगे? वास्तव में नहीं। ये cation channels भी अपने अपने cations के लिये विशिष्ट होती हैं। ऐसा मुख्यतः इन चैनल्स के pore के डायामीटर के कारण होता है। जैसे-जैसे किसी एटम (अथवा उसके आयन) का atomic number अथवा atomic weight बढ़ता जाता है, उसका आकार भी बढ़ता जाता है। इसी लिये यदि किसी चैनल का डायामीटर कम है तब वह केवल छोटे आयन्स को ही गुजरने देगा, अपने से बड़े डायामीटर वाले आयन्स को नही। इस प्रकार छोटे cation (जैसे Na+) केवल अपने Na- channels द्वारा ही गुजर सकते हैं। अर्थात Na+ channels केवल और केवल Na+ आयन्स के लिये विशिष्ट होते हैं।
जरा सोचें, छोटे डायामीटर वाले चैनल्स, बड़े आयन को निकलने न दें, यह बात तो समझ में आती है, परन्तु Na+ जैसे छोटे आयन, K+ चैनल्स जैसे बड़े डायामीटर वाले चैनल्स से क्यों नही निकल सकते? यद्यपि इस तथ्य का सटीक उत्तर उपलब्ध नहीं है, परन्तु यह माना जाता है कि किसी aquous solution में Na+ एवं K+ आयन्स, जल के मॉलीक्यूल्स के साथ मिलकर hydrated ion बनाते हैं। आश्चर्यजनक रुप से Na+ का hydrated ion, K+ के hydrated ion से बड़ा होता है (यद्यपि Na+ आयन, K+ आयन से आकार में छोटा होता है)। इसी कारण से K+ चैनल का डायामीटर अधिक होते हुए भी Na+ का hydrated ion उस चैनल से होकर नही निकल पाता। K+ का hydrated ion आकार में छोटा होने के कारण K+ चैनल्स से निकल जाता है। K+ चैनल के द्वार पर ही carbonyl oxygen के selective filter लगे होते हैं, जो K+ आयन से जल के मॉलीक्यूल को अलग कर K+ आयन को चैनल से गुजर जाने देते हैं।
Ionic composition of ICF and ECF are different
ICF में K+, Mg++ एवं PO4--- की मात्रा ECF से अधिक होती है एवं ECF में Na+, Ca++ एवं Cl- की मात्रा ICF से अधिक होती है। यदि इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी के अनुसार देखें तो इन सब में Na+ एवं K+ आयन्स सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। ECF में Na+, ICF की अपेक्षा 14 गुना अधिक मात्रा में मिलता है (142 Vs 10 mEq/l)। इसके विपरीत ICF में K+ ECF की अपेक्षा 35 गुना अधिक मात्रा में होता है (140 vs 4 mEq/l)। Na+ एवं K+ आयन्स के स्तरों की यह भिन्नता ही cells की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटीज को संचालित कराती है।
Movement of ions through ionic channels
इन दोनों के अतिरिक्त कुछ आयन चैनल्स ऐसे भी रहते हैं, जिनके द्वारा इन आयन्स का आवागमन बिना किसी रुकावट के (un-gated) भी हो सकता है (according to their concentration gradient)। इनको Na+ leak अथवा K+ leak channels कहते हैं एवं यह चैनल्स, leak channels कहलाती हैं। ये leak channels Na+ की अपेक्षा K+ के लिये 100 गुना अधिक permeable होती है। इसीलिये सामान्यतः इनको K+ leak channels के नाम से ही सम्बोधित किया जाता है।
पुनः, आवश्यकतानुसार खोलने अथवा बन्द करने के बाद भी कुछ समय बाद तो अंततः Na+ एवं K+ आयन्स के स्तर तो सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर बराबर हो ही जायेंगें। अतः उस स्तर को बार-बार बनाये रखने के लिये कुछ आयन्स को बलपूर्वक (उनके concentration gradient के विरुद्ध) lower concentration से higher concentration की ओर भी तो भेजना पड़ेगा। इस प्रकार कुछ Na+ एवं K+ चैनल्स, active pump के रुप में भी होने चाहिये, जिनमें ऊर्जा का उपयोग करते हुए भी इन आयन्स को against the concentration gradient pump रखकर भी सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर इनकी वांछित मात्रा बनायी रखी जा सके।
Electrical activity in a cell
क्योंकि cations (मुख्यतः Na+, K+ एवं Ca++) एवं anions (मुख्यतः Cl-) किसी सेल की bilayered lipid membrane से होकर नहीं गुजर सकते, अतः इनके लिये इन आयन्स की अपनी-अपनी विशिष्ट चैनल्स होती हैं। सामान्यतः सेल को polarized अवस्था में ही बनाये रखने के लिये यह चैनल्स बन्द रहती हैं, परन्तु किसी एक्टिविटी के समय यह चैनल्स खुल जाती हैं, जिससे आयन्स का passive movement उस सेल में वह एक्टिविटी सम्पन्न करा सके।
जिस प्रकार किसी बैटरी को चार्ज करके किसी बल्ब से जोड़ दिया जाये तब स्विच ऑन करते ही उस बल्ब में करंट के आने के साथ ही बल्ब जलना आरम्भ कर देता है, ठीक उसी प्रकार यह आयन चैनल्स भी एक स्विच की भांति कार्य करते हैं। जैसे ही कोई stimulus इन चैनल्स को खोलता है, इनसे होकर गुजरने वाला आयन्स का फ्लो भी सेल में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी आरम्भ कर देता है।
Excitation of a cell
जरा सोचें, क्या शरीर की प्रत्येक सेल को उत्तेजित करके उसमें कोई इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी उत्पन्न की जा सकती है? वास्तव में हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका, किसी न किसी रूप में उत्तेजित (excite) की जा सकती है एवं उसमें कुछ मात्रा में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी भी उत्पन्न की जा सकती है। यह उत्तेजना उस कोशिका में एक brief local potential उत्पन्न करती है। यदि यह local potential पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न हो तब यह action potential उत्पन्न कर सकता है, जो उस सेल द्वारा कोई शारीरिक क्रिया (biological response) सम्पन्न करा सकता है।
Types of stimuli
अगला प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार के stimulus किसी सेल को उत्तेजित कर सकते हैं? वास्तव में यह उत्तेजनायें (stimulus) विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं, physical या mechanical जैसे touch एवं pressure; thermal, chemical अथवा electrical । विभिन्न कोशिकाएं भिन्न-भिन्न stimuli द्वारा उत्तेजित होती हैं।
i) Skin - त्वचा पर जब कोई स्पर्श होता है तब यह mechanical stimulus द्वारा त्वचा पर स्थित रिसेप्टर्स को उत्तेजित करता है। दूसरे शब्दों में mechanical stimulus, इन रिसेप्टर्स में action potential (AP) उत्पन्न करता है। यह AP उस रिसेप्टर से सम्बद्ध न्यूरॉन में प्रवाहित हो जाता है।
ii) Neuron - एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन में यह AP, chemical stimulus (neurotransmitters) के रुप में प्रवाहित होता है (अर्थात अगला न्यूरॉन, chemical stimulus द्वारा उत्तेजित होता है)।
iii) Muscle - जब यह न्यूरॉन किसी मांसपेशी को उत्तेजित करता है तब neuromuscular junction पर भी यही chemical stimulus (neurotransmitters - NT) कार्य करता है (अर्थात मांसपेशी भी किसी न्यूरॉन से chemical stimulus द्वारा ही उत्तेजित होती हैं)। इसके विपरीत, एक मांसपेशी से दूसरी मांसपेशी में यह electrical stimulus सीधे-सीधे ही प्रवाहित हो जाता है (अर्थात एक मांसपेशी दूसरी मांसपेशी से electrical stimulus द्वारा उत्तेजित होती है)।
iv) Gland - जब यह न्यूरॉन किसी secretary gland को उत्तेजित करते हैं, तब वह ग्लैंड भी न्यूरॉन द्वारा सिक्रीट किये NT अर्थात chemical stimulus द्वारा ही उत्तेजित होती है।
इस प्रकार विभिन्न कोशिकाओं को उत्तेजित करने के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के stimuli का प्रयोग होता है तथा वह भिन्न-भिन्न परिणाम उत्पन्न करते हैं।
Na+K+ pump
हम सबने बचपन में खिलौने वाली कार अवश्य चलायी होगी, जिसमें एक बार चाबी भरकर यदि स्प्रिंग कस दी जाये (winding) उसके बाद स्वतः ही वह धीरे-धीरे खुलती जाती है (unwinding) तथा कार को चलाती रहती है। पूरी स्प्रिंग खुल जाने के बाद कार रुक जाती है तथा चाबी दोबारा भरनी पड़ती है। शरीर में भी Na+, K+, Ca++ एवं Cl- इत्यादि आयन्स के सेल में आने जाने हेतु इसी प्रक्रिया को प्रयोग में लाया जाता है। ECF में Na+ एवं ICF में K+ की मात्रा अधिक होती है। यदि आरम्भ में ही active transport के द्वारा ऊर्जा के प्रयोग से Na+ को ICF से ECF एवं K+ को ECF से ICF (against the concentration gradient) पंप कर दिया जाये तब यह concentration gradient को और अधिक बढ़ा देगा। यह कार में चाबी भरने के समान हुआ, जिसमें ऊर्जा को प्रयोग में लाकर kinetic energy को potential energy में परिवर्तित कर दिया गया। शरीर में यह प्रक्रिया सतत रुप से चलती रहती है। इलेक्ट्रिक रूप से एक्टिव सेल्स जैसे न्यूरॉन्स में ऊर्जा के प्रयोग का एक बड़ा भाग (60-70%) Na+ K+ के इस active transport में व्यय होता है। क्योंकि यह कार्य against the concentration gradient किया जाता है, इसीलिये इसे Na+K+ pumping कहते हैं। इस प्रक्रिया में 3Na+, cell के बाहर ढकेल दिये जाते हैं तथा 2K+, cell के अंदर खींच लिये जाते हैं।
Effects of Na+K+ pump
जरा सोचें, इस Na+ K+ pump के क्या परिणाम होंगे? प्रथम, ECF में Na+ एवं ICF में K+ की मात्रा और अधिक बढ़ती जायेगी। द्वितीय, क्योंकि 3 पॉजिटिव आयन्स सेल के बाहर भेजे जा रहे हैं तथा केवल 2 पॉजिटिव आयन्स सेल के अन्दर खींचे जा रहे हैं, अतः सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर ionic gradient भी स्थापित हो जायेगा, जिसमें सेल का बाहरी भाग electropositive एवं सेल का भीतरी भाग electronegative हो जायेगा।
इसके आगे की प्रक्रिया का अनुमान स्वतः ही लगाया जा सकता है। प्रकृति में प्रत्येक वस्तु अपनी पूर्वावस्था में लौटने का प्रयास करती है। इसी तथ्य को यूं भी समझ सकते हैं कि दो वस्तुओं की ऊर्जा स्तरों में भिन्नता हो (different kinds of energy levels) तब वह स्वतः ही समता (equilibrium) पाने का प्रयास करती है। अतः यदि Na+ की मात्रा सेल के बाहर अधिक हैं तब उनका प्रयास होगा कि अवसर मिलते ही वह सेल के भीतर आ जाये। इसी तरह यदि K+ की मात्रा सेल के भीतर अधिक है तब उसका प्रयास होगा कि वह सेल के बाहर निकल जाये। इसी प्रकार, यदि पॉजिटिव चार्ज की कुल मात्रा सेल के बाहर अधिक है तब वह भी सेल के भीतर आने का प्रयास करेगी।
Resting membrane potential
इस प्रकार यदि हम किसी सेल को हम resting state में भी देखें तब भी वह हमें neutralized phase में नही मिलेंगे। किसी एक्टिविटी के बिना भी कोई सेल हमेशा charged state में ही मिलती है। सेल का अंदरूनी भाग, बाहरी भाग की अपेक्षा अधिक electronegative रहता है। इसी को resting membrane potential (RMP) भी कहते हैं। दूसरे शब्दों में इसे सेल की polarity भी कह सकते हैं। अतः electrically active cells (जैसे neuron) rest के समय भी हमेशा polarized ही रहते हैं।
Depolarisation
किसी stimulus से इलेक्ट्रिकली एक्टिव सेल में Na चैनल्स एकाएक खुल जाते हैं व बड़ी संख्या में Na+ अंदर प्रवेश करने लगते हैं। इससे सेल के भीतर की electronegativity कम होने लगती है तथा RMP -65 (neurons में) से 0 की ओर लौटने लगता है। क्योंकि सेल पूर्व में polarised थी व अब उसका polarisation कम हो रहा है, अतः यह अवस्था depolarisation कहलाती है।
जिस प्रकार किसी ट्यूब लाईट में यदि वोल्टेज थोड़ी आ रही हो तो वह लुपलुपा तो सकती है परन्तु पूर्ण रुप से जलती तभी है जब उसे पर्याप्त वोल्टेज मिले। इसी प्रकार किसी सेल में होने वाला कोई भी stimulus थोड़ी अथवा अधिक मात्रा में depolarise तो करा सकता है परन्तु हर stimulus उस सेल में वांछित कार्य भी सम्पन्न करा सके, यह भी सम्भव नहीं। एक पर्याप्त क्षमता का stimulus ही किसी इलेक्ट्रिकली एक्टिव सेल में इतना depolarisation उत्पन्न करा पाता है जो कार्य रूप में परिवर्तित हो सके।
Action potential
सेल मेम्ब्रेन का वह potential जिस पर उस सेल में कार्य भी सम्पन्न हो सके, threshold potential कहलाता है। इस प्रकार किसी stimulus द्वारा आरंभ हुए Na+ influx से सेल में depolarisation (membrane potential का अधिक negative से कम negative होना) आरंभ होता है, जो यदि threshold potential तक पहुँच सके तब उस cell में अत्यंत तीव्रता से होना वाला potential change उत्पन्न करता है, जिसे action potential कहते हैं।
Na+ चैनल्स वास्तव में अपने दोनों ओर रहने वाले एक निश्चित voltage dffierence द्वारा संचालित होती है। इसीलिये इन्हें voltage gated Na+ channels कहते हैं। किसी भी stimulus द्वारा उत्पन्न potential से कुछ Na+ चैनल्स तो खुल जाते हैं तथा Na influx आरंभ करा देते हैं, परन्तु threshold potential तक पहुँचने पर यह अत्याधिक संख्या में Na+ चैनल्स को खोलकर तीव्रता से Na+ influx को बढ़ाता है। क्योंकि इस प्रक्रिया में Na+ influx ही Na+ influx की मात्रा को आगे बढ़ा रहा है, इसीलिये इसे positive feedback mechanism कहते हैं। इस समय पहले से भी बहुत अधिक संख्या में Na+ सेल में प्रवेश करते हैं व depolarisation की तीव्रता को बढ़ाते हैं। Na+ की यह अत्याधिक मात्रा ICF के negative potential को (जो पहले से ही RMP से threshold potential तक पहुँच चुका था) उसे अधिक पॉजिटिव बना देती है, जिससे वह negative potential से होते हुए positive potential तक overshoot कर जाता है। किसी सेल में तीव्रता से होने वाला यह change in potential, action potential कहलाता है, जो उस सेल से उसके विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न कराता है।
Repolarisation
Action potential के अंत तक ICF में Na+ की मात्रा एवं पॉजिटिव चार्ज अत्याधिक मात्रा में बढ़ जाता है। Na+ चैनल्स के दोनों ओर स्थापित यह नया voltage difference, Na+ चैनल्स को बंद कर देता है, जिससे Na influx बंद हो जाता है। इसी समय यह नया voltage difference एक दूसरे voltage gated channel, यानि K+ चैनल्स को खोल देता है। क्योंकि K+ आयन्स की मात्रा पहले से ही ICF में अधिक होती है, अतः स्वाभाविक रुप से वह अपने concentration gradient के अनुसार ICF से ECF की ओर रिसना आरम्भ करते हैं (K+ efflux)। ICF से ECF की ओर जाता हुआ यह पॉजिटिव चार्ज दोबारा ICF के potential को निगेटिव बना देता है अर्थात peak of action potential से 0 एवं threshold potential से होते हुए दोबारा RMP तक पहुँच देता है। सेल मेम्ब्रेन का depolarised state से दोबारा resting polarised state तक पहुँचना repolarisation कहलाता है।
Hyperpolarisation
तीव्रता से होता यह K+ efflux कुछ समय के लिये cell potential को RMP से भी नीचे (अर्थात और अधिक निगेटिव) ले जाता है। इसे after potential अथवा hyperpolarisation कहते हैं।
Rectification
शीघ्र ही Na+K+ pump के द्वारा Na+ व K+ ions के स्तर एवं सेल मेम्ब्रेन के दोनों ओर स्थित चार्जेज, अपने पूर्व के resting स्तर तक पहुँच जाते हैं तथा RMP दोबारा स्थापित हो जाता है। यह प्रक्रिया rectification कहलाती है।
Consequences of generation of AP
किसी excitable tissue जैसे nerve, muscle अथवा gland में AP ही विभिन्न कार्यों का संपादन कराता है। जैसे nerve में conduction of impulse, muscle में contraction तथा gland में secretion । आइये इन्हें विस्तार से समझते हैं।
Neurons - अब तक हम यह समझ चुके हैं कि AP उत्पन्न करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है Na+ influx का होना जो Na+ चैनल्स के खुलने के माध्यम से होता है। किसी न्यूरॉन में Na+ चैनल्स की पर्याप्त संख्या axon hillock अथवा इसके initial segment में होती है, जबकि dendrites एवं cyton में इनकी संख्या काफी कम होती है। इसी कारण, किसी stimulus के होने पर उसकी impulse, dendrites एवं cyton में flow तो करती है परन्तु नया AP, initial segment में ही उत्पन्न हो पाता
है। AP के उत्पन्न होते ही उस स्थान पर सेल मेम्ब्रेन की polarity reverse हो जाती है अर्थात सेल मेम्ब्रेन के भीतर electropositive जबकि AP उत्पन्न होने के स्थान के अतिरिक्त सेल मेम्ब्रेन के अन्य स्थानों पर पूर्ववत् electronegative। इस प्रकार AP उत्पन्न होने के स्थान पर एक electric circuit का आंरभ होता है, जिससे AP उत्पन्न होने वाले स्थान से उसके आसपास के क्षेत्रों में Na+ का प्रवाह आरंभ हो जाता है। इसका अर्थ हुआ कि AP के आसपास के क्षेत्रों में भी सेल के भीतर Na+ की मात्रा बढ़ने लगेगी एवं वहां की सेल मेम्ब्रेन का potential भी RMP से threshold potential (कम electronegative) की ओर बढ़ने लगेगा। इस प्रकार AP द्वारा उत्पन्न हुआ Na+ influx आसपास की सेल मेम्ब्रेन में भी depolarisation उत्पन्न कर वहां एक नया AP उत्पन्न करा देता है। यही उस न्यूरॉन में impulse का propagation कहलाता है।
Subthreshold stimulus and local potential
यदि प्रत्येक stimulus, excitation उत्पन्न कर सकता है तब तो शरीर का थोड़े समय के लिये भी विश्राम में रहना असम्भव हो जायेगा। जरा सोचें ऐसा क्यों नहीं होता? वास्तव में प्रत्येक stimulus किसी न्यूरॉन में कुछ न कुछ excitation उत्पन्न कर सकता है एवं यह excitation उसमें कुछ न कुछ local potential भी उत्पन्न कर सकता है। परन्तु प्रत्येक local potential, action potential भी उत्पन्न कर सकेगा, यह आवश्यक नहीं। एक साधारण stimulus केवल एक साधारण local potential ही उत्पन्न कर पाता है जो सामान्यतः threshold potential तक पहुँच ही नहीं पाता, जिससे AP उत्पन्न नही होता। ऐसे stimulus, subthreshold stimulus कहलाते हैं व उनमें उत्पन्न local potential अपनी उत्पत्ति के स्थान के कुछ ही दूरी के अंदर ही समाप्त हो जाते हैं (अर्थात न तो यह AP उत्पन्न कर पाते और न ही न्यूरॉन को ही अधिक दूरी तक प्रभावित कर पाते हैं)। इन local potentials का प्रभाव स्थानीय ही रह जाता है अर्थात न्यूरॉन में प्रवाहित नही होता। इसी कारण प्रत्येक साधारण (subthreshold) stimulus कोई परिणाम उत्पन्न नही कर पाते।
Summation of potentials
जरा सोचें, क्या इस प्रकार subthreshold stimulus द्वारा उत्पन्न local potential को एक कार्य की प्रतिक्रिया मात्र ही माना जाना चाहिये अथवा इसकी कोई वास्तविक उपयोगिता (significance) भी हो सकती है? यह सत्य है कि local potentials द्वारा कुछ ही Na+ चैनल्स खुल पाते हैं, जिनसे point of excitation पर AP उत्पन्न नहीं हो पाता। परन्तु जितनी दूरी तक भी इस local potential का प्रभाव है यदि उसके भीतर ही कोई दूसरा stimulus एक और local potential उत्पन्न कर दे तब सम्भव है कि यह दोनों mild excitations मिल कर एक strong excitation उत्पन्न कर सकें। अतः इस प्रकार दो या दो से अधिक local potentials यदि आसपास के क्षेत्र में ही उत्पन्न हों तब यह परस्पर मिल कर इतनी Na+ चैनल्स को खोल सकते हैं, जिनसे AP उत्पन्न हो सके। यही AP, सम्पूर्ण neuronal cell membrane तक फैल सकने की क्षमता भी रखता है, जिससे neuronal excitation द्वारा वांछित कार्य सम्पन्न हो सके। यही प्रक्रिया summation of potentials कहलाती है।
Refractory period actions
इस प्रकार तो यदि कोई subthreshold stimulus, एक न्यूरॉन को एक ही स्थान पर बार-बार stimualte करता रहे तब उस न्यूरॉन में लगातार AP उत्पन्न होता ही रहना चाहिये। जरा सोचें ऐसा क्यों नही होता? हम जानते हैं कि प्रत्येक excitatory cell, all or none law का अनुसरण करती है अर्थात वह या तो AP उत्पन्न कर सकेगी या फिर नहीं। यदि वह AP उत्पन्न नहीं कर पा रही है तब तो उसी समय, उसी स्थान पर हुआ दूसरा local potential पहले से summate होकर AP उत्पन्न कर सकेगा, परन्तु यदि पहला stimulus ही AP उत्पन्न कर चुका है तब इसी समय हुआ दूसरा stimulus दूसरा AP उत्पन्न नही कर सकेगा।
Absolute refractory period
अब अगली परिस्थिति को समझते हैं। यदि AP उत्पन्न हो चुका है तथा depolarization की प्रक्रिया चल रही है तब अगले stimulus का क्या प्रभाव होगा? याद करें, AP द्वारा उत्पन्न depolarisation के समय अत्यधिक संख्या में Na+ चैनल्स खुल जाते हैं। इस समय हुआ अगला stimulus कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, और अधिक Na चैनल्स को खोल नही पायेगा। अतः पुनः यह stimulus भी व्यर्थ ही जायेगा।
अब depolarisation समाप्त होने के बाद, repolarisation के आरम्भ होते ही, उस समय हुए stimulus का प्रभाव समझते है। वास्तव में neuronal membrane की positivity बढ़ने पर वह Na+ चैनल्स में हुए conformational changes ही उसके activation gate को खोलते हैं। उसी समय उसके inactivation gate के बन्द होने की प्रक्रिया भी आरम्भ हो जाती है। परन्तु inactivation gate के बंद होने की यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत धीमी व कुछ समय रुक कर आरम्भ होती है। Na+ चैनल्स के बंद होने से मेम्ब्रेन का depolarisation बढ़ना बंद हो जाता है तथा वह वापिस अपनी पूर्व स्थिति में लौटना प्रारंभ करती है (repolarisation)। अब जब तक neuronal membrane potential अपने RMP के समीप नहीं आ जाता, इन Na+ चैनल्स को दोबारा खोल पाना संभव नहीं होता। इसीलिये इस समय तक भी हुआ अगला stimulus दूसरा AP उत्पन्न नहीं करा पाता। इस प्रकार उपरोक्त दोनों अवस्थाओं (पूरा depolarisation एवं initial 1/3 of repolarisation) के समय दूसरा AP उत्पन्न कराना पूर्णतया असंभव होता है। इसीलिये उस समयांतराल को absolute refractory period कहते हैं।
Relative refractory period
आइये अब first 1/3 of repolarisation के बाद हुए excitation के प्रभाव को समझते हैं। इस समय K+ चैनल्स के खुले होने के कारण काफी अधिक K+ efflux हो चुका होता है तथा membrane potential तेजी से अपने RMP के समीप लौट रहा होता है। जितना यह RMP के समीप आता जाता है, repolarisation के समय inactivation gate द्वारा बंद हुए Na+ चैनल्स को दोबारा खोल पाना उतना अधिक संभव होता जाता है क्योंकि अभी भी K+ चैनल्स के खुले होने के कारण K+ efflux से repolarisation जारी होता है। अतः यदि अगला AP उत्पन्न करना है तब इसके लिये सामान्य से भी अधिक शक्तिशाली stimulus की आवश्यकता होगी जो और भी अधिक Na+ चैनल्स को खोल सके जो K+ efflux द्वारा होते repolarisation के प्रभाव को भी neutralise करते हुए अगला depolarisation उत्पन्न करा सके। यह समय (later 2/3 of repolarisation एवं hyperpolarisation) जिसमें कोई stimulus (यदि वह सामान्य threshold stimulus से अधिक शक्तिशाली हो) अगला AP उत्पन्न कर सकता है, relative refractory period कहलाता है। यह absolute एवं relative refractory periods, किसी न्यूरॉन को हर किसी सामान्य stimuli द्वारा उत्तेजित होने से बचाते हैं।
Changes in excitability of a cell
जरा सोचें, क्या किसी न्यूरॉन की excitability को कम भी किया जा सकता है? सामान्य सी बात है, जब excitation का सारा खेल Na+ चैनल्स के द्वारा खेला जा रहा है तब इन्हीं चैनल्स को प्रभावित कर के excitability को भी कम किया जा सकता है। ECF में उपस्थित Ca++, इन Na+ चैनल्स की permeability कम कर सकते हैं। वास्तव में Ca++, इन Na+ चैनल्स के extra cellular part से सम्बद्ध हो जाते हैं, जिससे Na+ चैनल्स की electrical state परिवर्तित हो जाती है। पोसिटिव चार्ज युक्त Ca++ के Na+ चैनल्स से जुड़ने पर उसे activate करने या खोलने के लिये अधिक voltage difference उत्पन्न करना पड़ता है। अतः यदि ECF में Ca++ की मात्रा अधिक हो तब Na permeability कम हो जाने से न्यूरॉन की excitability घट जाती है। इसके विपरीत यदि ECF में Ca++ की मात्रा कम हो जाये तब Na+ चैनल्स की permeability बढ़ जाती है अर्थात न्यूरॉन्स के potential को RMP (-90 mv) से threshold (-65 mv) तक पहुँचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती एवं वह -65 mv के पूर्व अथवा -85 से -70 mv के मध्य ही खुल जाते हैं, जिससे नया AP उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार ECF में Ca++ की मात्रा कम होने (hypocalcemia) पर न्यूरॉन्स hyperexcitable हो जाते हैं एवं यहां तक कि Ca++ की मात्रा 50% तक रह जाने पर उनमें spontaneous discharges आरम्भ होने से tetanic spells तक उत्पन्न हो सकते हैं।
Myelinated and unmyelinated neuron
उपरोक्त वर्णन से हमने समझा कि किस प्रकार एक AP front अपने आसपास के axon को उत्तेजित करता हुआ आगे बढ़ता जाता है। इस प्रक्रिया में उसे axon के प्रत्येक भाग में Na+ influx करा कर AP front को आगे बढ़ाना होता है तथा AP front के गुजर जाने के बाद वहां RMP को पुर्नस्थापित करने के लिये K+ efflux व Na+ K+ pump द्वारा बड़ी मात्रा में ionic exchange भी कराना पड़ता है। यदि इस कार्य में प्रयुक्त होने वाली ऊर्जा पर विचार करें तब यह अत्यन्त खर्चीला कार्य होगा। इसीलिए कुछ nerves में myelin sheath का आवरण चढ़ा होता है (myelinated neurons) जो किसी बिजली के तार के ऊपर चढ़े insulator की भांति कार्य करता है। न्यूरॉन के जिस भाग में myelin sheath चढ़ी होती है, उस स्थान पर Na+ चैनल्स ढक जाने से निष्क्रिय हो जाते हैं। इसके विपरीत अगल-बगल की दो Schwann cells के मध्य के बिना ढके स्थान (node of Ranvier) में वः सक्रिय बने रहते हैं एवं उनकी संख्या बढ़ जाती है। इस प्रकार किसी myelinated neuron में Na+ influx केवल nodes of Ranvier पर ही हो पाना संभव होता है। अतः AP द्वारा न्यूरॉन के अंदर उत्पन्न electric circuit, सीधे एक node of Ranvier से अगले node में अपना प्रभाव डालता है तथा वहां Na+ influx बढ़ा कर अगला AP उत्पन्न करता है। क्योंकि myelinated neuron में यह AP front एक node से सीधे दूसरे node में उछल कर पहुँच जाता है, इसीलिये इसे saltatory (Latin saltare = leap, उछलना या कूदना; अर्थात उछलता हुआ, कूदता हुआ अथवा कलाबाजी लगाता हुआ) conduction कहते हैं। Saltatory conduction की यह प्रक्रिया न केवल impulse transmission की गति को unmyelinated neurons की अपेक्षा कई गुना तक बढ़ा देती है बल्कि न्यूरॉन के प्रत्येक स्थान पर ionic exchange की आवश्यकता कम होने से ऊर्जा की खपत भी कई गुना तक कम कर देती है।
Myelination offers rapid transmission of impulses at a lower energy expenditure
जरा सोचें,क्या किसी न्यूरॉन के myelination से इसमें nerve impuse के प्रवाह की गति पर भी कोई प्रभाव पड़ता होगा? अब तक हम यह समझ चुके हैं कि न्यूरान के एक स्थान पर AP उत्पन्न होने के बाद अंदर आये हुए Na+ आयन, पहले स्थान के अगले बगल के दूसरे स्थानों पर भी depolarisation उत्पन्न करा सकते हैं, जो इन दूसरे स्थानों पर भी AP भी उत्पन्न कर सकता है। Unmyelinated neurons में यह depolarisation front इसी प्रकार अगल बगल के स्थानों को प्रभावित करता हुआ बढ़ता जाता है। इसके विपरीत myelinated neurons में Schwann cells द्वारा myelinated क्षेत्र में, जहां सभी Na+ चैनल्स इसके द्वारा ढक जाते हैं, नयी Na+ चैनल्स का खुलना या AP उत्पन्न होना संभव नही होता। दो Schwann cells के मध्य स्थित node of Ranvier ही वह स्थान बचता है जहां Na+ चैनल्स काफी अधिक संख्या में स्थित होते हैं।
अधिकांशतया पहले स्थान द्वारा हुआ Na+ influx, membrane potential को 1-3 मिमी की दूरी तक ही बढ़ा पाता है, जिससे नया AP उत्पन्न हो सके। क्योंकि दो nodes के मध्य अंतराल लगभग 1 मिमी का ही होता है अतः एक node पर उत्पन्न हुआ AP अगले node तक depolarisation का प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। इस प्रकार से myelinated neuron में AP अगल बगल के स्थान पर ही न होकर पहले स्थान (node) के बाद उछलकर सीधे अगले स्थान (node) पर पहुँच जाता है। इस प्रकार myelinated neurons में nerve impulse का प्रवाह nerve impulse की अपेक्षा 5.50 गुना तक बढ़ जाता है। स्मरण रहे, thin unmyelinated fibres में यह प्रवाह मात्र 1 m/sec की गति से होता है, जबकि thick myelinated fibres में यह प्रवाह 100 m/sec तक की गति तक हो सकता है।
इस प्रकार, myelinated neurons में saltatory conduction से दो प्रकार के लाभ होते हैं। i) इससे nerve impulse की गति 5.50 गुना तक तीव्र हो जाती है। ii) इसके अतिरिक्त, यह न्यूरॉन्स की ऊर्जा को संरक्षित रखने में भी बहुत मदद करता है। वास्तव में, resting energy requirement का एक बड़ा भाग RMP प्राप्त करने के लिये आयन्स के movement में ही व्यय हो जाता है। Unmyelinated neurons में एक depolarisation front के अगल बगल प्रत्येक स्थान पर नया front बनाने के लिये हर स्थान पर ionic movement कराना पड़ता है जिसमें काफी अधिक ऊर्जा व्यय होगी। इसके विपरीत myelinated neurons में यह depolarisation एवं AP केवल nodes पर ही होते हैं, जिसके कारण ionic movement 100 गुना तक कम हो जाता है। इस प्रकार से saltatory conduction द्वारा myelinated neurons में unmyelinated neurons की अपेक्षा काफी ऊर्जा की भी बचत की जाती है।
Electrical activities at a glance
प्रत्येक कोशिका के अन्दर (ICF) में K+ अधिक होते हैं।
प्रत्येक कोशिका के बाहर (ECF) में Na+ अधिक होते हैं।
प्रत्येक कोशिका के अन्दर (ICF में), निगेटिव चार्ज (-) अधिक होता हैं।
प्रत्येक कोशिका के बाहर (ECF में), पॉजिटिव चार्ज (+) अधिक होता हैं।
इस प्रकार सामान्य अवस्था में (during rest), सेल मेम्ब्रेन के बाहर पॉजिटिव चार्ज व भीतर निगेटिव चार्ज रहता है। इस प्रकार सामान्य अवस्था में (rest) में भी सेल मेम्ब्रेन charged या polarized रहती है।
शरीर की प्रत्येक सेल का RMP -20 से -100 mv के मध्य रहता है। Skeleteal muscle cell में यह लगभग -90 mv एवं न्यूरॉन में यह लगभग -65 mv रहता है।
इसका अर्थ यह हुआ कि किसी सेल के भीतर के सापेक्ष उसके बाहर पॉजिटिव चार्ज (मुख्यतः Na+ ) अधिक होता है।
ECF के यह अधिक Na+ अपने concentration gradient के कारण ICF में आना चाहते हैं, जिससे यह concentration gradient, neutralize हो सके।
ICF का निगेटिव चार्ज भी बाहर के cation (मुख्यतः Na+) को आकर्षित करता है, जिससे वह neutralize हो सके।
सेल मेम्ब्रेन पर स्थित Na+ चैनल्स सामान्य अवस्था में बन्द रहते हैं व इस प्रकार से यह polarity बनी रहती है।
Na+ चैनल्स के खुलने से इनका कोशिका के भीतर आना आरम्भ होता है, जिससे ICF का निगेटिव चार्ज घट कर शून्य की ओर बढ़ने लगता है। इसे polarisation का कम होना अर्थात depolarisation कहते हैं।
सेल मेम्ब्रेन के निगेटिव चार्ज के एक threshold level पर पहुँचते ही Na+ चैनल्स एकाएक अत्याधिक मात्रा में खुल जाते हैं व अत्यधिक मात्रा में Na+ कोशिका के भीतर प्रवेश करने लगते हैं। शीघ्रता से आते हुए Na+, ICF में पॉजिटिव चार्ज बढ़ा देते हैं जिससे कुछ समय के लिये ही सेल मेम्ब्रेन की polarity पलट (reverse हो) जाती है। यही action potential कहलाता है।
सेल मेम्ब्रेन के K+ चैनल्स के खुल जाने से अन्दर के K+ (या पॉजिटिव चार्ज) बाहर जाने लग जाते हैं, जिससे मेम्ब्रेन दोबारा अपनी पूर्वावस्था पर लौटने लगती है, जिससे कोशिका के बाहर पॉजिटिव चार्ज दोबारा अधिक हो जाता है। इसे repolarisation कहते हैं।
Na+K+ pump दोबारा सक्रिय रुप से पुनः 3Na+ को बाहर निकाल कर 2K+ को अन्दर ले आता है, जिससे Na+ एवं K+ के स्तर भी पूर्ववत् हो जाते हैं।
उपरोक्त प्रक्रिया, sensory receptor के उत्तेजित होने, न्यूरान में impulse के प्रवाहित होने, synapse द्वारा इस impulse के प्रवाहित होने अथवा neuromuscular junctions के द्वारा इस तरह से muscle fibre के उत्तेजित होने, प्रत्येक स्थान पर व्यवहार में आती है।
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