- by Dr.Pankaj Kumar Agarwal
- in डायबिटीज कुछ अनकहे तथ्य
- at 05th Jul, 2018
डायबिटीज कुछ अनकहे तथ्य

डायबिटीज की बीमारी में अक्सर इन्सुलिन का नाम आता है। समाज में इन्सुलिन के बार में बहुत सी भ्रांतियाँ और डर व्याप्त है। तो आइये, समझते हैं आखिर इन्सुलिन है क्या?इससे पहले हमें थोड़ा–सा डायबिटीज के बारे में समझना होगा।
हमारा शरीर जो भी भोजन ग्रहण करता है वह पाचन क्रिया द्वारा ग्लूकोज या ‘शुगर’ में रूपान्तरित हो जाता है। यही ग्लूकोज रक्त में प्रवाहित होकर हमारे शरीर के अंगो को ऊर्जा प्रदान करता है। यह महत्वपूर्ण कार्य एक शारीरिक द्रव्य ‘इन्सुलिन’ के माध्यम से पूर्ण होता है। जो इन ग्लूकोज कणों को रक्त से ले जाकर विभिन्न समस्त अंगों में ले जाती है और शरीरिक क्रिया द्वारा उन अंगों को ऊर्जा प्रदान करती है।
जब ये इन्सुलिन शरीर में बनना बंद कर दे या इसकी कार्यक्षमता कम हो जाए उस स्थिति में यह ग्लूकोज रक्त में ही रुक जाता है और विभिन्न अंगों तक नहीं पहुंचता जिससे उन अंगों को ऊर्जा नहीं मिलती जिसके कारण शरीर में विभिन्न बीमारी के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। इसी अवस्था को डायबिटीज कहते हैं।
तो देखा आपने, किस तरह इन्सुलिन इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करती है और हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। अब इसके बारे में और अधिक जानकारी लेते हैं।
प्रश्न : इन्सुलिन क्या होती है?
उत्तर : इन्सुलिन एक प्राकृतिक, शारीरिक द्रव्य है ‘जिसे हार्मोन’ कहते हैं और ये हमारे ही शरीर में और अन्य जीवों में भी प्राकृतिक रूप से विद्यमान होती है। हमारे अमाश्य (पेट) के पास बायें हाथ की तरफ एक ग्रन्थी होती है जिसे ‘पै्UUक्रियाज’ कहते हैं जो इन्सुलिन का निर्माण करती रहती है।
प्रश्न : इन्सुलिन कैसे काम करती है?
उत्तर : जब भी हमारा शरीर कुछ भी खाने की चीज ग्रहण करता है वह हमारे अमाशय में जाता है और वहां विभिन्न पाचन क्रियाओं के द्वारा ग्लूकोज में अवघटित होता है। जिसके बाद यह रक्त संचार में शामिल हो जाता है। उसी समय यह ग्रन्थी जिसे पै्क्रिरयाज का नाम दिया गया है अपनी कोशिकाओं द्वारा इस इन्सुलिन के नाम के द्रव्य का उत्पादन करती है और रक्त में शामिल कर दी जाती है। यही इन्सुलिन इन ग्लूकोज के कणों को अपने साथ लेकर समस्त शारीरिक अंगों तक पहुंचाती है। क्योंकि इन्हीं ग्लूकोज के कणों से अंगों के लिए ऊर्जा का निर्माण होता है और हमारी शरीर रूपी मशीन कार्य करने लगती है।
प्रश्न : अगर यह इन्सुलिन नहीं हो तो क्या होगा?
उत्तर : इस इन्सुलिन की अनुपस्थिति में या इसके आंशिक रूप से कार्य करने पर यह ग्लूकोज के कण विभिन्न अंगों की कोशिकाओं के अंदर नहीं प्रवेश कर पायेंगे और ऊर्जा प्रदान नहीं होगी। जिसके फलस्वरूप वह कोशिकाएं, अंतत: वह अंग शिथिल होने लगेगा और पूर्ण रूप से कार्य नहीं करेगा और विभिन्न शारीरिक लक्षण प्रकट होने लगेगें। इसी अवस्था को डायबिटीज कहते हैं।
प्रश्न: डायबिटीज के साथ में इन्सुलिन की क्या आवश्यकता है?
उत्तर : इन्सुलिन ही मुख्य कारक है जो शुगर लेवल को नियंत्रित करता है। इन्सुलिन का काम करना या काम न करना ही अनियंत्रित डायबिटीज का कारण है। हम जो भी इलाज कर रहे हैं उसमें स्वस्थ जीवनशैली को अपनाते हैं, या गोलियाँ खाते हैं। यह गोलियाँ भी इन्सुलिन पर ही कार्य करती हैं या जब स्थिति अनियंत्रित होने लगती है तो सीधे तौर पर दवाईयों के साथ इन्सुलिन लगाना होता है। यह वही द्रव्य है जो प्रकृतिक रूप से हमारे शरीर में पहले से ही मौजूद है।
प्रश्न : क्या इन्सुलिन लगाने से उसकी आदत पड़ जाती है?
उत्तर : नहीं यह सिर्फ एक भ्रांति है। इन्सुलिन को जब चाहें रोक सकते हैं, जब चाहें शुरू कर सकते हैं। इसको व्यापक तौर पर समझने की जरूरत है। हम रोज खाना खाते हैं। क्या हमें खाने की आदत पड़ गई है? या यह शरीर की जरूरत है। हम देखने के लिए चश्में का इस्तेमाल करते हैं, क्या यह जरूरत है? या आदत। जी हां, यह हमारी जरूरत है, आवश्यकता है। अगर नहीं इस्तेमाल करेंगे तो देखेंगें कैसे। इन्सुलिन लगाने की सलाह तभी दी जाती है जब चिकित्सक को लगता है कि स्थिति या शुगर लेवल जरूरत से ज्यादा बिगड़ गया है। इसको तुरंत नियंत्रण में लाना है। इसकी आदत नहीं पड़ती (क्योंकि यह मादक पदार्थों में नहीं आती जैसे शराब, अफीम, गांजा, तम्बाकू, इत्यादि)
प्रश्न: क्या इन्सुलिन डाबिटीज का आखिरी इलाज है ? इसके बाद मरीज नहीं बचता?
उत्तर : यह भी समाज में फैली एक भ्रांति है। सच्चाई यह है कि इन्सुलिन तो एक वरदान है कि हम इसे बहार से इन्जेकशन के रूप में लगा लेते हैं और इसकी कमी पूरी हो जाती है। जिसके फलस्वरूप शुगर लेवल नियंत्रित हो जाता है। असल में यह सिर्फ एक अफवाह है जो पुराने समय से चली आ रही है। पुराने समय में बहुत ज्यादा इलाज या डायबिटीज के प्रति जागरुकता नहीं थी। जिसकी वजह से शुगर का पता तब चलता था जब स्थिति अनियंत्रित हो जाती थी। या यूं कहें कि जब शरीर की कार्यक्षमता उम्र के कारण खत्म होने लगती थी तो शुगर लेवल भी बढ़ जाते थे और जटिलताएं पैदा होने लगती थीं। जैसें नसों की खराबी, आँखों में कमी, गुर्देे का फेल होना, दीमागी एवं हृदय सम्बधित समस्यांए। तब हम मरीज को अस्पताल में भर्ती कराते थे और डायबिटीज का इलाज इन्सुलिन से होता था। क्योंकि शुगर लेवल बहुत ज्यादा हो जाता था । अब, अनियंत्रित शुगर के कारण शरीर के अंग बेकार हो चुके थे उनको वापिस लाना मुश्किल होता था। शुगर तो नोर्मल हो गई क्योंकि इन्सुलिन लग रहा है। लेकिन डायबिटीज की जटिलताओं को सामान्य नहीं किया जा सका और मरीज को बचाना कठिन हो गया। इसलिए कहा जाने लगा कि यह इन्सुलिन ही आरोपी है और यह जानलेवा है।
अत: इस गलत अवधारणा को खत्म करना होगा ओर आगे गलत प्रचार को रोकना होगा। यह सिर्फ एक इलाज का तरीका है जो बिलकुल स्वस्थ तरीका माना गया है।
इसी गलत धारणा के कारण रोगी इन्सुलिन लेने से मना करता है कि हम मर जायेंगे लेकिन इन्सुलिन नहीं लगायेेंगे। या चिकित्सक से कहते हैं कि बस 10 दिन और दे दीजिए हम शुगर लेवल नियंत्रित कर लेंगे और चिकित्सक कहता है शुगर लेवल ज्यादा है गोलियाँ ज्यादा मददगार नहीं होंगी। जैसे–जैसे शुगर लेवल नीचे आयेगा हम इन्सुलिन की मात्र भी कम करने की कोशिश करेंगे। मगर रोगी अपना समय बर्बाद कर लेता है और जटिलताएं पैदा होने लगती हैं।
कुछ अनकहे तथ्य
इन्सुलिन का प्रयोग सामाजिक रोक–टोक के कारण भी नहीं होता कि लोग क्या कहेंगे। मतलब हमारी हालत अब इतनी बुरी हो चुकी है कि हमें इन्सुलिन लगाना पड़ता है जबकि ऐसे बहुत से मरीज मिल जायेंगे जो इन्सुलिन लगा रहे हैं।
कहीं बाहर आने–जाने में व्यवधान होगा। यह उतना आसान नहीं है। जितना गोलियाँ खाना, जबकि सत्य यह है कि वैज्ञानिक खोजों में इन्सुलिन लगाना और भी सरल बना दिया है। जोकि एक पैन के रूप में आता है और इसे लगाना भी इतना ही सरल है। इसको अपने साथ आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है और यह कमरे के तापमान पर भी खराब नहीं होता । इसलिए जरूरत पड़ने पर फ्रिज से बाहर कमरे के तापमान के बराबर भी रख सकते हैं।
रोज–रोज इन्सुलिन इंजेक्शन से दर्द होगा – विज्ञान की तरक्की ने इतना अच्छा तरीका निकाल लिया है कि जिससे इन्सुलिन पैन का इस्तेमाल बहुत ही सुविधाजनक और दर्दरहित हो गया है। इसकी संुई बिल्कुल दर्दरहित होती है और पता भी नहीं चलता। बस तीन या चार बार लगाने के बाद सुंई बदलना चाहिए।
इन्सुलिन पेट पर रोज लगाना अव्यवहारिक है और इसको रोज–रोज कौन लगायेगा – इसको लगाना बहुत ही असान होता है। बस एक बार सीखने की जरूरत होती है। उसके बाद कोई भी आसानी से इसे लगा सकता है। इसको पेट पर नाभी से 2.5 इंच के दूरी बनाते हुए खाल में लगाना होता है। यह तरीका चिकित्सक पहले अपने सामने सीखा देता है। पेट के अलावा रोगी इसें जाघों में, कुल्हे में, कमर के पिछले हिस्से में एवं हाथ की उपरी हिस्से में लगा सकते हैं।
प्रश्न : क्या इन्सुलिन के और दवाईयों के दुष्प्रभाव भी होते हैं?
उत्तर : जी हाँ, इसका एक दुष्प्रभाव है कि शरीर का वजन बढ़ना। लेकिन यह बहुत ही आंशिक होता है। अगर हम स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं तो यह ज्यादा परेशानी का विषय नहीं है। इससे ज्यादा तो रोगी आरामदायक जिन्दगी की वजह से वजन बढ़ा लेता है।
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